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शोध [Research] का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति और उद्देश्य क्या है?
शोध (Research) का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति और उद्देश्य क्या है?: को समर्पित इस लेख में शोध से संबंधित जानकारी दी गई है। जिसे पढ़कर शोध से नवीन तथा गहन खोज कैसे हो सकता है को जानेंगे। यहां शोध (Research) का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति और उद्देश्य क्या है? Shodh kise kahte hai को विस्तार से बताया गया है।
शोध का अर्थ क्या है? RESEARCH
- व्यापक अर्थ में शोध या अनुसंधान किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना'
- या विधिवत गवेषणा करना होता है। शोध को अनुसंधान भी कहा जाता है।
- वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए
- जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है
- शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्य का नाम है
- जिसके अंतर्गत बोधपूर्वक तत्वों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से
- उसका अवलोकन, विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है।
शोध(Research) की परिभाषाएं
शोध की प्रकृति क्या है .
- यह एक अनोखी प्रक्रिया है जो ज्ञान के प्रकाश और प्रसार में सहायक होती है।
- यह समाज उद्देश्य के लिए भी किया जाता है
- सामाजिक शोध की प्रकृति वैज्ञानिक असामाजिक तत्वों घटनाओं एवं समाजिक जीवन पर किया जाता है
- इस प्रक्रिया से नवीन ज्ञान की वृद्धि एवं विकास किया जाता है
- इस कार्य में गुणात्मक तथा परिणात्कम तथ्यों की व्यवस्था की जाती है
- और उनका विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं
- वैज्ञानिक प्राकृति से तात्पर्य है कि इसमें समस्या विशेष का अध्ययन
- एक व्यवस्थित पद्धति के अनुसार किया जाता है
- शोध की संपूर्ण प्रक्रिया विविध तूफानों से गुजरती है
- एक शोध पद्धति में कुछ विशेषताएं और गुण होने चाहिए
- यह नियमित संपूर्ण व्यवस्थित सटीक और सत्यापन योग्य होना चाहिए।
शोध या अनुसंधान का उद्देश्य क्या है ?
उद्देश्य निम्न है-.
- सत्य की खोज करना तथा छिपे हुए सत्य का पता लगाना।
- नवीन तथ्यों की खोज करना या नवीन ज्ञान की प्राप्ति करना।
- किसी घटना के बारे में नई जानकारी प्राप्त करना।
- किसी विशेष स्थिति का सही वर्णन प्रस्तुत करना।
- समस्याओं का निदान या समाधान करना।
- वैज्ञानिक कार्य विधि का उपयोग द्वारा प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करना।
- विज्ञान पर आधारित वस्तुपरक ज्ञान प्राप्त करना।
- किसी चरों के बीच कार्य-कारण संबंध को समझना और परीक्षण करना।
- किसी घटना के साथ सह- संबंध की जानकारी प्राप्त करना।
- व्यवस्थित प्रयत्न द्वारा सिद्धांतों का निर्माण करना।
सामान्यत: शोध के उद्देश्यों को चार भागों में बांटा गया है
- सैद्धांतिक उद्देश्य इसके अंतर्गत वैज्ञानिक विधि के माध्यम से नवीन सिद्धांतों एवं नियमों का प्रतिपादन किया जाता है तथा यह कार्य व्याख्यात्मक प्रकृति के होते हैं।
- सत्यात्माक उद्देश्य वस्तुतः यह दार्शनिक प्रकृति के होते हैं जिसमें दर्शन के आधार पर अंतिम परिणाम की प्राप्ति की जाती है।
- तथ्यात्मक उद्देश्य वस्तुतः यह वर्णनात्मक प्रकृति के होते हैं। इसका कारण यह है कि इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु तथ्यों की खोज कर उनका विश्लेषण किया जाता है। इसमें ऐतिहासिक अनुसंधान ओके प्रकार का सहारा लिया जाता है।
- व्यावहारिक उद्देश्य इन उद्देश्यों को विकासात्मक अनुसंधान की श्रेणी में रखते हैं तथा इनकी प्राप्ति हेतु विभिन्न क्षेत्रों में क्रियात्मक अनुसंधान का सहारा लिया जाता है। इसमें केवल उपयोगिता को ही महत्व प्रदान किया जाता है।
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अनुसन्धान: अर्थ, परिभाषा विशेषताएँ और प्रकार सोपान विधियाँ | Research kaise karte hain
अनुसन्धान: अर्थ , विशेषताएँ और प्रकार research kaise karte hain.
अनुसन्धान का अर्थ Meaning of Research in Hindi
मानव प्रगति में अनुसन्धान का सर्वाधिक महत्त्व रहा है। मानव के समक्ष प्रकृति और समय निरन्तर चुनौतियाँ प्रस्तुत करते रहे हैं। उन्हें दूर करने के लिए मानव तर्क एवं प्रयोग के द्वारा अनुसन्धान कर प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ.
अनुसन्धान की परिभाषाएँ
जेम्स ड्रेवर के अनुसार ,
" किसी क्षेत्र में ज्ञान अथवा सत्यापन हेतु की जाने वाली क्रमबद्ध खोज हो अनुसन्धान है। '
रेडमैन व अन्य के अनुसार ,
" अनुसन्धान नवीन ज्ञान प्राप्त करने हेतु एक व्यवस्थित प्रयास है।"
ट्रेवर्स के अनुसार ,
" शैक्षिक अनुसन्धान वह प्रक्रिया है जो शैक्षिक परिस्थितियों में एक व्यवहार सम्बन्धी विज्ञान के विकास की ओर अग्रसर होती है।"
रामेल जे. फ्रांसिस का मानना है कि
"अनुसन्धान नवीन सूचनाओं या सम्बन्धों की खोज हेतु सावधानीपूर्वक किया गया शोध व जांच-पड़ताल है , जो विद्यमान ज्ञान में अभिवृद्धि करती है तथा उसे सत्यापित करती है।"
वेस्टर के अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश के अनुसार ,
" अनुसन्धान केवल सत्य के लिए खोज मात्र नहीं है अपितु यह दीर्घकालीन सघन और सादृश्य संधान है।"
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अनुसन्धान वह क्रमबद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है , जिसमें वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा वर्तमान ज्ञान का परिमार्जन , उसका विकास अथवा किसी नए तथ्य की खोज द्वारा ज्ञानकोश में वृद्धि की जाती है।
अनुसन्धान शब्द का अर्थ
अंग्रेजी में अनुसन्धान को ' रिसर्च ' कहते हैं , जो दो शब्दों से मिलकर बना है Research = Re+ Search. 'Re' का अंग्रेजी में अर्थ होता है , " फिर से यानी बार-बार ' तथा 'Search' का अर्थ है ' खोजना ' .
- अंग्रेजी का यह शब्द ' रिसर्च ' शोध की प्रक्रिया को प्रस्तुत करता है कि शोधकर्ता किसी तथ्य को बार-बार देखता है , जिससे वह उसके सम्बन्ध में प्रदत्तों को एकत्रित करता है और उसके आधार पर निष्कर्ष निकालता है। शोधकार्य द्वारा चरों का सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। प्रयोगात्मक शोध से कारण प्रभाव , सह-सम्बन्ध तथा सर्वेक्षण शोध कार्य द्वारा सामान्य सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है। विकासात्मक शोधकार्यों में चरों की प्रभावशीलता का अध्ययन किया जाता है। ऐतिहासिक शोधकार्यों में नवीन तथ्यों की खोज की जाती है।
अनुसन्धान की विशेषताएँ Characteristics of Research in Hindi
अनुसन्धान की मूलभूत विशेषताएँ —
- अनुसन्धान की प्रक्रिया वैज्ञानिक , वस्तुनिष्ठ , व्यवस्थित तथा सुनियोजित होती है।
- इस प्रक्रिया से नवीन ज्ञान की वृद्धि एवं विकास किया जाता है।
- इस कार्य में गुणात्मक तथा परिमाणात्मक प्रदतों की व्यवस्था की जाती है और उनका विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
- शोधकार्य का आलेख शोध प्रबन्ध सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता है।
- प्रत्येक शोधकार्य को अपनी विधि व प्रविधियाँ होती हैं , जो शोध के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है।
- इस प्रक्रिया में प्रदतों के आधार पर परिकल्पनाओं की पुष्टि की जाती है।
- प्रत्येक शोधकार्य से निष्कर्ष निकाल कर उनका सामान्यीकरण किया जाता है।
- इसमें व्यक्तिगत पक्षों , भावनाओं तथा विचारों को महत्व नहीं दिया जाता है।
- अनुसन्धान कार्य सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दो प्रकार से हो सकते हैं।
- यह प्रक्रिया कई चरणों में सम्पन्न की जाती है।
अनुसन्धान के प्रकार Types of Research in Hindi
किसी समस्या के समाधान प्राप्त करने के दो मुख्य कारण होते हैं
(1) बौद्धिक तथा
(2) व्यावहारिक।
इसी के आधार पर समस्त अनुसन्धानों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है
(I) मूलभूत अनुसन्धान
(ii) व्यावहारिक अनुसन्धान
मूलभूत अनुसन्धान क्या होते हैं
- इसका मूल उद्देश्य नई प्ररचनाओं का निर्माण करना है। इस प्रकार के अनुसन्धान के निष्कर्ष से विशेष वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन होता है। इस प्रकार के अनुसन्धान का मुख्य कारण तथ्यों का एकत्रीकरण है। मूलभूत अनुसन्धान हमारे ज्ञान की वृद्धि करता है। यह व्यावहारिक अनुसन्धान के लिए आधार तथ्यों की खोज तथा एकत्रीकरण करता है।
व्यावहारिक अनुसन्धान क्या होते हैं ?
- इसके तहत ऐसे अनुसन्धान आते हैं , जिनके द्वारा किसी समस्या विशेष का समाधान आवश्यक हो तथ्यों द्वारा यदि अनुसन्धानकर्ता किसी क्रियात्मक समस्या का समाधान करे तो यह अनुसन्धान व्यावहारिक अनुसन्धान की श्रेणी में आता है।
- यद्यपि अनुसन्धानों का इस प्रकार वर्गीकरण किया गया है , तथापि मूलभूत अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान को अलग करना एक कठिन कार्य है।
- मूलभूत अनुसन्धानों से प्राप्त तथ्यों की पुष्टि व्यावहारिक अनुसन्धान से की जाती है। अनुसन्धान में इन तथ्यों व निष्कर्षो का अनुप्रयोग होता है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में क्रियात्मक समस्याओं पर किए अनुसन्धान नए सिद्धान्तों व नियमों को बनाने में सहायक होते हैं।
अनुसन्धान कार्य की श्रेणियां
सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत किए जाने वाले अनुसन्धान कार्य को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-
- प्रयोगशाला प्रयोग
- क्षेत्र प्रयोग
- क्षेत्र अध्यन
- सर्वेक्षण अनुसन्धान
अनुसन्धान के सोपान Steps of Research in hindi
अनुसन्धान एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है। अनुसन्धान प्रक्रिया को विशिष्ट ढंग से क्रमबद्ध किया जाता है। यह प्रक्रिया कई क्रियाओं के मिलने से पूरी होती है , जो परस्पर जुड़ी होती हैं।
सामान्यतः अनुसन्धान की प्रक्रिया में छः चरण होते हैं-
- समस्या का चयन
- परिकल्पना का प्रतिपादन
- शोध की रूपरेखा
- आंकड़ों/डाटा का संकलन
- प्रदत्तों का विश्लेषण
- सामान्यीकरण तथा निष्कर्षों का प्रतिपादन
अनुसन्धान प्रक्रिया का पहला चरण
- अनुसन्धान प्रक्रिया के पहले चरण में समस्या का चयन किया जाता है। समस्या की परिभाषा और सीमा को परिभाषित किया जाता है ताकि इसे व्यावहारिक रूप दिया जा सके।
अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा चरण
- दूसरे चरण में इस समस्या के सभी सम्भावित समाधानों के लिए परिकल्पना की जाती है। इसके लिए कथन दिए जाते हैं। इन्हें परिकल्पना कहते हैं। इन्हीं परिकल्पनाओं से समस्या का समाधान होता है।
अनुसन्धान प्रक्रिया का तीसरा चरण
- तीसरे चरण में परिकल्पनाओं की पुष्टि के लिए रूपरेखा तैयार की जाती है। इससे शोध विधि तथा प्रविधियों के बारे में निर्णय लिया जाता है।
अनुसन्धान प्रक्रिया का चौथा चरण
- चौथे चरण में परिकल्पना से सम्बन्धित प्रदतो/आंकड़ों का भिन्न तरीकों से संकलन किया जाता है।
अनुसन्धान प्रक्रिया का पंचवा चरण
- पाँचवे चरण में प्रदत्तों को सार्थक बनाने के लिए सांख्यिकीय प्रविधियों को प्रयुक्त किया जाता है। आँकड़ों या तथ्यों के विश्लेषण से परिकल्पनाओं की पुष्टि की जाती है और उनके आधार पर निर्णय लिया जाता है। प्रदत्तों के विश्लेषणों के परिणामों की व्याख्या की जाती है।
अनुसन्धान प्रक्रिया का छठवा चरण
छठे चरण में प्रदत्तों के विश्लेषण और परिणामों के आधार पर निष्कर्षों का प्रतिपादन किया जाता है। बार-बार निष्कर्षों की पुनरावृत्ति होने पर वे सामान्य नियम या सिद्धान्त बन जाते हैं , जो नए ज्ञान की वृद्धि करते हैं और जिनके द्वारा क्रियाओं में सुधार और विकास लाया जाता है।
सभी प्रकार के अनुसन्धान कार्यों में इन्हीं सोपानो का अनुसरण किया जाता है।
अनुसन्धान की विधियाँ Methods of Research in Hindi
प्रत्येक अनुसन्धान एक विशेष प्रकृति की समस्या का वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करता है। समस्या की प्रकृति के अनुसार अनुसन्धान की विधि निर्धारित की जाती है।
अनुसन्धान का अन्वेषणात्मक प्रारूप प्राथमिक दिशाएँ प्रदान करता है। जब तक किसी अनुसन्धानकर्ता को समस्या की सुस्पष्ट व्याख्या , उसके सैद्धान्तिका परिप्रेक्ष्यों तथा प्रयोगात्मक पक्षों का ज्ञान नहीं होगा , तब तक यह अनुसन्धान करने में समर्थ नहीं होगा।
अन्वेक्षणात्मक अनुसन्धान प्ररचना की निम्न पद्धतियाँ है-
- सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण एवं सिंहावलोकन
- आनुभविक व्यक्तियों से सर्वेक्षण
- एकल विषय अध्ययन
अनुसन्धान की विधियों का वर्गीकरण विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है। किसी ने विषय क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण किया और किसी ने शिक्षा सम्बन्धी , मनोविज्ञान सम्बन्धी तथा इतिहास सम्बन्धी अनुसन्धान के रूप में वर्गीकृत किया। किसी विद्वान ने इसके ऑकड़े प्राप्त करने की विधि के आधार पर तो किसी ने उसके उद्देश्य के आधार पर वर्गीकरण किया है।
सामान्य तौर पर अनुसन्धान विधियों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- ऐतिहासिक अनुसन्धान ( Historical Research)
- वर्णनात्मक अनुसन्धान ( Descriptive Research)
- प्रयोगात्मक अनुसन्धान ( Experimental Research)
- क्रियात्मक अनुसन्धान ( Actionable Research)
- अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान ( Inter-disciplinary Research) .
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शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - Research Hypothesis – Definition, Nature and Types
शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - research hypothesis – definition, nature and types, शोध परिकल्पना.
परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता है। बिना परिकल्पना के अनुसन्धा उद्देश्यहीन तथा बिन्दुहीन होता जाता है। बिना किसी अच्छे अर्थ के परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं इसलिये परिकल्पना का आकार मिश्रित तथा कठिन तथा लाभ से परिपूर्ण होता है। परिकल्पना का स्वरूप बड़ा एवं करीब होने पर इसके आकार को रद्दो बदल कर अनुसन्धान के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं किया जायेगा तो अनुसन्धानकर्ता अनावश्यक एवं तथ्यहीन आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।
शोध परिकल्पना :
परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।
परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाषीकरण के पश्चात् उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है, अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है, यह निश्चित करने के पश्चात उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है। अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है। वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है।
परिकल्पना की परिभाषा :
परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। जो निम्न है।
करलिंगर ( Kerlinger) - "परिकल्पना को दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन मानते हैं।"
मोले (George G. Mouley ) - "परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करना है।"
गुड तथा हैट (Good & Hatt ) - "परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है। परिकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है, और गलत भी।"
लुण्डबर्ग (Lundberg ) - "परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है।"
मैकगुइन (Mc Guigan ) - "परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य कथन है।
अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जाँच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।
परिकल्पना की प्रकृति :
किसी भी परिकल्पना की प्रकर्षत निम्न रूप में हो सकती है। -
1. यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये ।
2. इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की ओर केन्द्रित करना चाहिए।
3. इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।
4. यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।
5. यह प्रकर्षत के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए।
परिकल्पना के स्रोत :
परिकल्पनाओं के मुख्य स्रोत निम्नवत है।
समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन
समस्या सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
विज्ञान -
विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।
संस्कृति -
संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कर्षतिक मूल्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं का जन्म होता है।
व्यक्तिगत अनुभव
व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार होता है, किन्तु नये अनुसंध नकर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही सम्पन्न होता है, उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही सरलता होती है।
रचनात्मक चिंतन -
यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं (i) तैयारी
(ii) विकास
(iii) प्रेरणा और
(iv) परीक्षण | अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास
किया, उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली, परिकल्पना निर्माण और परीक्षण किया।
अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -
अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
पूर्व में हुए अनुसंधान
सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना का सब्जन किया जा सकता है।
उत्तम परिकल्पना की विशेषताएं या कसौटी :
एक उत्तम परिकल्पना की निम्न विशेषतायें होती हैं -
परिकल्पना जाँचनीय हो
एक अच्छी परिकल्पना की पहचान यह है कि उसका प्रतिपादन इस ढंग से किया जाये कि उसकी जाँच करने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सके कि परिकल्पना सही है या गलत । इसके लिये यह आवश्यक है कि परिकल्पना की अभिव्यक्ति विस्तष्त ढ़ंग से न करके विशिष्ट ढंग से की जाये। अतः जाँचनीय परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसे विश्वास के साथ कहा जाय कि वह सही है या गलत ।
परिकल्पना मितव्ययी हो
परिकल्पना की मितव्ययिता से तात्पर्य उसके ऐसे स्वरूप से है जिसकी जाँच करने में समय, श्रम एवं धन कम से कम खर्च हो और सुविधा अधिक प्राप्त हो।
परिकल्पना को क्षेत्र के मौजूदा सिद्धान्तों तथा तथ्यों से सम्बन्धित होना चाहिए
कुछ परिकल्पना ऐसी होती है जिनमें शोध समस्या का उत्तर तभी मिल पाता है जब अन्य कई उप कल्पनायें (Sub-hypothesis) तैयार कर ली जाये। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उनमें तार्किक पूर्णता तथा व्यापकता के आधार के अभाव होते हैं जिसके कारण वे स्वयं कुछ नयी समस्याओं को जन्म दे देते हैं और उनके लिये उपकल्पनायें तथा तदर्थ पूर्वकल्पनायें (adhoc assumptions) तैयार कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी अपूर्ण परिकल्पना की जगह तार्किक रूप से पूर्ण एवं व्यापक परिकल्पना का चयन करते हैं।
परिकल्पना को किसी न किसी सिद्धान्त अथवा तथ्य अथवा अनुभव पर आधारित होना चाहिये
• परिकल्पना कपोल कल्पित अथवा केवल रोचक न हो। अर्थात् परिकल्पना ऐसी बातों पर आधारित न हो जिनका कोई सैद्धान्तिक आधार न हो। जैसे - काले रंग के लोग गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा अधिक विनम्र होते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना आधारहीन परिकल्पना है क्योंकि यह किसी सिद्धान्त या मॉडल पर आधारित नहीं है।
परिकल्पना द्वारा अधिक से अधिक सामान्यीकरण किया जा सके
परिकल्पना का अधिक से अधिक सामान्यीकरण तभी सम्भव है जब परिकल्पना न तो बहुत व्यापक हो और न ही बहुत विशिष्ट हो किसी भी अच्छी परिकल्पना को संकीर्ण ( narrow) होना चाहिये ताकि उसके द्वारा किया गया सामान्यीकरण उचित एवं उपयोगी हो ।
परिकल्पना को संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होना चाहिए
संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होने का अर्थ है परिकल्पना व्यवहारिक एवं वस्तुनिष्ठ ढंग से परिभाषित हो तथा उसके अर्थ से अधिकतर लोग सहमत हों । ऐसा न हो कि परिभाषा सिर्फ व्यक्ति की व्यक्गित सोच की उपज हो तथा जिसका अर्थ सिर्फ वही समझता हो।
इस प्रकार हम पाते हैं कि शोध मनोवैज्ञानिक ने शोध परिकल्पना की कुछ ऐसी कसौटियों या विशेषताओं का वर्णन किया है जिसके आधार पर एक अच्छी शोध परिकल्पना की पहचान की जा सकती है।
परिकल्पना के प्रकार
मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्र तथा शिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं द्वारा बनायी गयी परिकल्पनाओं के स्वरूप पर यदि ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उसे कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है। शोध विशेषज्ञों ने परिकल्पना का वर्गीकरण निम्नांकित तीन आधारों पर किया है -
चरों की संख्या के आधार पर -
साधारण परिकल्पना साधारण परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना - से है जिसमें चरों की संख्या मात्र दो होती है और इन्ही दो चरों के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण स्वरूप बच्चों के सीखने में पुरस्कार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहाँ सीखना तथा पुरस्कार दो चर है जिनके बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की है। इस प्रकार परिकल्पना साधारण परिकल्पना कहलाती है।
जटिल परिकल्पना - जटिल परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें दो से अधिक चरों के बीच आपसी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी माध्यम के निम्न उपलब्धि के विद्यार्थियों का व्यक्तित्व हिन्दी माध्यम के उच्च उपलब्धि के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है । इस परिकल्पना में हिन्दी अंग्रेजी माध्यम निम्न उच्च उपलब्धि स्तर एवं व्यक्तित्व तीन प्रकार के चर सम्मिलित हैं अतः यह एक जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।
चरों की विशेष सम्बन्ध के आधार पर
मैक्ग्यूगन ने (Mc. Guigan, 1990) ने इस कसौटी के आधार पर परिकल्पना के मुख्य दो प्रकार बताये हैं।
Ii) सार्वत्रिक या सार्वभौमिक परिकल्पना -
सार्वत्रिक परिकल्पना से स्वयम् स्पष्ट होता है कि ऐसी परिकल्पना जो हर क्षेत्र और समय में समान रूप से व्याप्त हो अर्थात् परिकल्पना का स्वरूप ऐसा हो जो निहित चरों के सभी तरह के मानों के बीच के सम्बन्ध को हर परिस्थित में हर समय बनाये रखे। उदाहरण स्वरूप- पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें बताया गया सम्बन्ध अधिकांश परिस्थितियों में लागू होता है।
(ii) अस्तित्वात्मक परिकल्पना
इस प्रकार की परिकल्पना यदि सभी - व्यक्तियों या परिस्थितियों के लिये नही तो कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति के लिये निश्चित रूप से सही होती है। जैसे सीखने की प्रक्रिया में कक्षा में कम से कम एक बालक ऐसा है पुरस्कार की बजाय दण्ड से सीखता है इस प्रकार की परिकल्पना अस्तित्वात्मक परिकल्पना है।
विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर
विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना के निम्न तीन प्रकार है।
(i) शोध परिकल्पना - इसे कार्यरूप परिकल्पना या कार्यात्मक परिकल्पना भी कहते हैं। ये परिकल्पना किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित या प्रेरित होती है। शोधकर्ता इस परिकल्पना की उदघोषणा बहुत ही विश्वास के साथ करता है तथा उसकी यह अभिलाषा होती है कि उसकी यह परिकल्पना सत्य सिद्ध हो उदाहरण के लिये 'करके सीखने' से प्राप्त अधिगम अधिक सुदृढ़ होता है और अधिक समय तक टिकता है।' चूँकि इस परिकल्पना में कथन 'करके सीखने के सिद्वान्त पर आधारित है अतः ये एक शोध परिकल्पना है।
शोध परिकल्पना दो प्रकार की होती है-
दिशात्मक एवं अदिशात्मक |
दिशात्मक परिकल्पना में परिकल्पना किसी एक दिशा अथवा दशा की ओर इंगित करती है जब कि अदिशात्मक परिकल्पना में ऐसा नही होता है।
उदाहरण- "विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि एवं कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि में अन्तर है।"
उपरोक्त परिकल्पना अदिशात्मक परिकल्पना का उदाहरण हैं।
क्योंकि बुद्धि में अन्तर किसका कम या ज्यादा है इस ओर संकेत नहीं किया गया। इसी परिकल्पना को यदि इस प्रकार लिखा जाय कि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि कला वर्ग के छात्रों की अपेक्षा कम होती है अथवा कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि से कम है तो यह एक दिशात्मक शोध परिकल्पना होगी क्योंकि इसमें कम या अ क एक दिशा की ओर संकेत किया गया है।
(ii) शून्य परिकल्पना
शून्य परिकल्पना शोध परिकल्पना के ठीक विपरीत होती है। इस परिकल्पना के माध्यम से हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं होने के संबंध का उल्लेख करते हैं। उदाहरण स्वरूप उपरोक्त परिकल्पना को नल परिकल्पना के रूप में निम्न रूप से लिखा जा सकता है विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि एंव कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि में कोई अंतर नहीं है। एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि, "व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी सीखता है तो इस परिकल्पना की शून्य परिकल्पना यह होगी कि 'व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी नहीं सीखता है। अतः उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से शून्य अथवा नल परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
(iii) सांख्यिकीय परिकल्पना
जब शोध परिकल्पना या शून्य परिकल्पना - का सांख्यिकीय पदों में अभिव्यक्त किया जाता है तो इस प्रकार की परिकल्पना सांख्यिकीय परिकल्पना कहलाती है। शोध परिकल्पना अथवा सांख्यिकीय परिकल्पना को सांख्यिकीय पदों में व्यक्त करने के लिये विशेष संकेतों का प्रयोग किया जाता है। शोध परिकल्पना के लिये H, तथा शून्य परिकल्पना के लिये H का प्रयोग होता है तथा माध्य के लिये X का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण- यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह 'क' बुद्धिलब्धि में समूह 'ख' से श्रेष्ठ है तो इसकी सांख्यिकीय परिकल्पना H तथा H के पदों में निम्नानुसार होगी -
H1 : Xa > Xb
H0 : Xa = Xb
यहाँ पर माध्य X का प्रयोग इसलिये किया गया है क्योंकि एक दूसरे से बुद्धि लब्धि की श्रेष्ठता जानने के लिये दोनो समूहों की बुद्धि लब्धि का मध्यमान जानना होगा जिसके आधार पर श्रेष्ठता की माप की जा सकेगी।
इस प्रकार एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह क की बुद्धि लब्धि एवं समूह 'ख' की बुद्धि लब्धि में अन्तर है तो इसकी H एवं H, इस प्रकार होगी।
H1 : Xa "" X b
H0 : Xa = X b
इस प्रकार विभिन्न प्रकार से शोध परिकल्पना का वर्गीकरण किया जा सकता है।
परिकल्पना के कार्य
अनुसन्धान कार्य में परिकल्पना के निम्नांकित कार्य है :
दिशा निर्देश देना
परिकल्पना अनुसंधानकता को निर्देशित करती है। इससे यह ज्ञात होता है कि अनुसन्धान कार्य में कौन कौन सी क्रियायें करती हैं एवं कैसे करनी है। अतः परिकल्पना के उचित निर्माण से कार्य की स्पष्ट दिशा निश्चित हो जाती है।
प्रमुख तथ्यों का चुनाव करना
परिकल्पना समस्या को सीमित करती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के चुनाव में सहायता करती है। किसी भी क्षेत्र में कई प्रकार की समस्यायें हो सकती है लेकिन हमें अपने अध्ययन में उन समस्याओं में से किन पर अध्ययन करना है उनका चुनाव और सीमांकन परिकल्पना के माध्यम से ही होता है।
पुनरावृत्ति को सम्भव बनाना
पुनरावृत्ति अथवा पुनः परीक्षण द्वारा अनुसन्धान के निष्कर्ष की सत्यता का मूल्यांकन किया जाता है। परिकल्पना के अभाव में यह पुनः परीक्षण असम्भव होगा क्यों कि यह ज्ञात ही नहीं किया जा सकेगा किस विशेष पक्ष पर कार्य किया गया है तथा किसका नियंत्रण करके किसका अवलोकन किया गया है।
निष्कर्ष निकालने एवं नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन करना -
परिकल्पना अनुसंधानकर्ता को एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता करती है तथा जब कभी कभी मनोवैज्ञानिकों को यह विश्वास के साथ पता होता है कि अमुक घटना के पीछे क्या कारा है तो वह किसी सिद्धान्त की पष्ठभूमि की प्रतीक्षा किये बिना परिकल्पना बनाकर जाँच लेते हैं। परिकल्पना सत्य होने पर फिर वे अपनी पूर्वकल्पनाओं परिभाषाओं और सम्प्रत्ययों को तार्किक तंत्र में बांधकर एक नये सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देते है।
अतः उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम परिकल्पनाओं के क्या मुख्य कार्य है आदि की जानकारी स्पष्ट रूप से प्राप्त कर सकते हैं. किसी भी शोध परिकल्पना से तात्पर्य समस्या समाधान के लिये सुझाया गया वो उत्तर हैं जो दो या दो से अधिक चरों के बीच क्या और कैसा सम्बन्ध T है बताता है। शोध परिकल्पना को प्राप्त करने के कई स्रोत है व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सजग रहकर अपनी सूझ द्वारा इसे आसानी से प्राप्त कर सकता है। उत्तम परिकल्पनाओं की विशेषताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। साथ ही परिकल्पनाओं के प्रकार को भी समझाया गया है।
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Research Project – Definition, Writing Guide and Ideas
Table of Contents
A research project is a structured investigation into a specific question or topic aimed at discovering new information, testing theories, or solving problems. Research projects are common in academic, scientific, and professional settings, providing a foundation for innovation, knowledge expansion, and informed decision-making. This guide explains what a research project is, offers a step-by-step writing guide, and presents ideas to inspire your next research endeavor.
Research Project
A research project involves systematic investigation to answer a research question or test a hypothesis. It requires collecting and analyzing data, evaluating results, and drawing conclusions. Research projects can range from small-scale studies, like undergraduate papers, to large-scale investigations with significant societal impact, such as clinical trials or environmental research.
Characteristics of a Research Project :
- Objective : Research projects are typically guided by a specific objective or goal.
- Systematic Approach : Data collection and analysis follow a structured process to ensure reliability.
- Evidence-Based : Research findings are supported by data and established theories.
- Contributive : Results often contribute to existing knowledge or provide insights into a field.
Writing Guide for a Research Project
A research project has several components, each essential for building a coherent and compelling study. Here is a step-by-step guide to writing your research project:
Step 1: Define Your Research Question or Problem
- Identify the Topic : Start with a broad area of interest and narrow it down to a specific, manageable topic.
- Formulate the Research Question : Turn your topic into a research question. For example, if your topic is climate change, a possible question could be, “What are the impacts of climate change on coastal ecosystems?”
- Develop a Hypothesis (if applicable) : For hypothesis-driven research, state your expected outcomes based on prior knowledge.
Step 2: Conduct a Literature Review
- Gather Existing Research : Collect academic papers, books, and credible sources related to your topic.
- Summarize Key Findings : Identify and summarize the major findings, theories, and gaps in current research.
- Establish Your Study’s Relevance : Explain how your research will contribute to existing knowledge by addressing an unresolved issue or adding a new perspective.
Step 3: Design the Research Methodology
- Choose a Research Design : Select a design that suits your question, such as experimental, observational, or survey-based.
- Select Data Collection Methods : Decide on the techniques you’ll use to gather data, like interviews, surveys, or field observations.
- Define the Sample Size and Criteria : Specify who or what will be included in the study, and outline your sampling method.
- Describe the Data Analysis Plan : Explain how you’ll analyze the data. This could involve statistical tests, coding qualitative data, or comparing groups.
Step 4: Collect and Analyze Data
- Execute the Data Collection Plan : Implement your data collection methods, following ethical guidelines and proper procedures.
- Analyze the Data : Use appropriate software or methods to interpret your data. Quantitative data might involve statistical analysis, while qualitative data might require thematic analysis.
Step 5: Present Findings and Interpret Results
- Summarize Key Results : Present your findings in a clear and concise manner, using tables, graphs, or charts where appropriate.
- Interpret the Results : Discuss what the findings mean in relation to your research question and hypothesis.
- Acknowledge Limitations : Highlight any limitations of your study, such as sample size or methodological constraints, that could affect your conclusions.
Step 6: Write the Conclusion and Recommendations
- Draw Conclusions : Summarize the main insights from your research and indicate whether your hypothesis was supported.
- Offer Recommendations : Suggest potential applications for your findings or propose further research directions.
- Reflect on Implications : Discuss the broader impact of your research on the field or society.
Step 7: Write and Organize the Research Report
Your final report should include the following sections:
- Title Page : Contains the project title, your name, date, and affiliation.
- Abstract : A brief summary of your research, highlighting the purpose, methodology, and findings.
- Introduction : Introduces the research problem, objectives, and significance of the study.
- Literature Review : Summarizes existing research and establishes your study’s relevance.
- Methodology : Details the research design, data collection, and analysis methods.
- Results : Presents the findings in a structured format, often with visuals.
- Discussion : Interprets the results, compares them to prior research, and explores implications.
- Conclusion : Summarizes the study’s outcomes and suggests areas for further research.
- References : Lists all sources cited in your project.
Research Project Ideas
Here are some research project ideas across different fields to inspire your study:
1. Social Sciences
- Impact of Social Media on Adolescent Mental Health : Examines how different social media platforms influence teenagers’ self-esteem and anxiety levels.
- Effects of Remote Work on Employee Productivity : Studies how working from home affects productivity and work-life balance.
- Role of Social Support in Coping with Chronic Illness : Investigates how social support networks affect physical and mental health outcomes for patients with chronic illnesses.
2. Business and Economics
- Impact of Brand Loyalty on Consumer Purchasing Decisions : Analyzes how loyalty programs and brand reputation influence buying behavior.
- Influence of Digital Marketing on Small Business Growth : Explores how small businesses benefit from using digital marketing channels like social media and SEO.
- Effects of Inflation on Consumer Spending Patterns : Studies how inflation rates influence consumer habits and spending priorities.
3. Environmental Science
- Impact of Plastic Pollution on Marine Life : Investigates how plastic waste affects ecosystems and wildlife in oceans.
- Effectiveness of Renewable Energy Policies : Analyzes the success and challenges of policies promoting solar, wind, or other renewable energy sources.
- Effects of Climate Change on Biodiversity in Tropical Rainforests : Studies how climate variations impact species diversity and ecosystem stability.
4. Education
- Impact of Technology on Student Engagement in Online Learning : Explores how digital tools like interactive platforms and gamification affect students’ attention and motivation.
- Role of Parental Involvement in Academic Performance : Studies how parent engagement impacts children’s educational outcomes.
- Effectiveness of Experiential Learning in STEM Education : Investigates whether hands-on, real-world experiences improve students’ understanding of STEM concepts.
5. Health and Medicine
- Effects of Diet on Cognitive Function : Studies the impact of different diets, such as the Mediterranean diet, on cognitive health and memory.
- Influence of Exercise on Mental Health : Investigates how physical activity affects mood and stress management.
- Effectiveness of Vaccination Programs in Reducing Infectious Diseases : Analyzes the outcomes of vaccination campaigns and barriers to vaccination uptake.
Tips for Choosing a Research Project Topic
- Identify Your Interests : Select a topic that genuinely interests you. Engaging with a subject you’re passionate about will make the research process more enjoyable.
- Consider Relevance : Choose a topic that has significance and relevance to current trends or issues in your field.
- Evaluate Feasibility : Make sure the project is practical within your timeframe, budget, and available resources.
- Review Existing Research : Conduct a preliminary literature review to see if there is enough material and to identify any knowledge gaps.
- Clarify Objectives : Define clear research objectives and ensure the topic aligns with them, giving your study a focused direction.
A well-planned research project can provide meaningful contributions to your field of study and demonstrate your analytical and problem-solving abilities. From defining a focused research question to presenting clear findings, each step is essential for creating a comprehensive and impactful study. By choosing a relevant topic and following a structured approach, you can conduct a successful research project that adds valuable insights to your area of interest.
- Creswell, J. W., & Creswell, J. D. (2018). Research Design: Qualitative, Quantitative, and Mixed Methods Approaches . Sage Publications.
- Kumar, R. (2019). Research Methodology: A Step-by-Step Guide for Beginners . Sage Publications.
- Saunders, M., Lewis, P., & Thornhill, A. (2019). Research Methods for Business Students . Pearson Education.
- Bryman, A. (2016). Social Research Methods . Oxford University Press.
- Flick, U. (2018). An Introduction to Qualitative Research . Sage Publications.
About the author
Muhammad Hassan
Researcher, Academic Writer, Web developer
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- अधिगम की प्रभावशाली विधि
- प्रोजेक्ट विधि
प्रोजेक्ट विधि (Project Method) – प्रयोजना/परियोजना/प्रोजेक्ट प्रणाली द्वारा सीखना
परियोजना या प्रोजेक्ट प्रणाली के जन्मदाता विलियम किलपैट्रिक (W. H. Kilpatrick) हैं। वे प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डीवी के शिष्य रह चुके थे। अतः उनके प्रयोजनवाद या व्यवहारवाद से विशेष रूप से प्रभावित थे। किलपैट्रिक के विचार में वर्तमान शिक्षा का सबसे बड़ा दोष उसका सामाजिक जीवन से पूर्णतया अलग होना है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली पूर्णतया सैद्धान्तिक है और उसका व्यावहारिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। विद्यालयों में छात्रों को केवल सूचना मात्र प्रदान की जाती है। अत: यह आवश्यक है कि शिक्षा और जीवन का परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाये।
किलपैट्रिक के अनुसार-“ हम चाहते हैं कि शिक्षा वास्तविक जीवन की गहराई में प्रवेश करे, केवल सामाजिक जीवन में ही नहीं वरन् उस उत्तम जीवन में जिसकी हम आशा करते हैं। ”
प्रोजेक्ट प्रणाली का दार्शनिक आधार है व्यवहारवाद । इस प्रणाली में छात्र उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में करते हैं। छात्र जो कुछ भी सीखता है वह क्रियाशील होकर सीखता है तथा वह जो क्रियाएँ सीखता है, वे सामाजिक जीवन से सम्बन्धित होती हैं।
परियोजना या प्रोजेक्ट का अर्थ (Meaning of project)
परियोजना या प्रोजेक्ट की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने निम्न ढंग से दी है-
- पार्कर के अनुसार, “ प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है। “
- किलपैट्रिक के शब्दों में, “ प्रोजेक्ट वह उद्देश्यपूर्ण कार्य होता है जो पूर्ण संलग्नता के साथ सामाजिक वातावरण में किया जाये। “
- बेलार्ड के अनुसार, “ प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का एक ही भाग है जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है।”
- स्टीवेन्सन के शब्दों में, “ प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है, जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है। “
उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि
- प्रत्येक प्रोजेक्ट का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है।
- प्रोजेक्ट रुचिपूर्ण होता है।
- प्रोजेक्ट क्रिया सामाजिक वातावरण में की जाती है।
- प्रत्येक प्रोजेक्ट को आरम्भ करने के पश्चात् उसे पूर्ण करना भी आवश्यक माना जाता है।
प्रोजेक्ट प्रणाली के सिद्धांत (Principles of project method)
प्रोजेक्ट प्रणाली के निम्न सिद्धान्त हैं-
- प्रयोजनता – प्रोजेक्ट का सप्रयोजन होना परम आवश्यक है। अध्यापक छात्र के सम्मुख प्रयोजन-युक्त कार्य प्रस्तुत करता है।
- क्रियाशीलता – ‘प्रोजेक्ट’ में क्रिया को भी प्रधानता दी जाती है। इसमें ‘करके सीखने’ का सिद्धान्त प्रयोग में लाया जाता है। छात्र जो कुछ भी सीखता है, वह करके सीखता है।
- यथार्थता – छात्र को प्रदान किये जाने वाले समस्यात्मक कार्य यथार्थ या वास्तविक होने चाहिये। वास्तविक जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का हल छात्र शीघ्र निकाल लेते हैं।
- उपयोगिता – उपयोगी कार्यों में छात्र अधिक रुचि रखते हैं तथा उन्हें शीघ्र कर लेते हैं। अतः प्रोजेक्ट का उपयोगी होना भी आवश्यक है अर्थात् ज्ञान का उपयोगी और वास्तविक होना आवश्यक है।
- रोचकता – इस प्रणाली में प्रोजेक्ट का चुनाव छात्र स्वयं करते हैं। अतः अपना कार्य करने में विशेष रुचि लेते हैं। छात्रों के सामने समस्याएँ भी रुचिपूर्ण ही प्रस्तुत की जाती हैं।
- स्वतन्त्रता – प्रोजेक्ट प्रणाली में छात्रों को स्वयं अपना कार्य चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।
- सामाजिकता – इस प्रणाली में छात्रों को उन क्रियाओं को करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं, जिनके करने से उनमें सामाजिकता का विकास होता है।
प्रोजेक्ट प्रणाली की कार्य विधि (Procedure of project method)
प्रोजेक्ट प्रणाली को पूर्ण करने के लिए निम्न पदों का प्रयोग किया जाता है-
- परिस्थिति उत्पन्न करना।
- योजना चुनना ।
- कार्यक्रम बनाना ।
- कार्यक्रम क्रियान्वित करना।
- कार्य का निर्णय या मूल्यांकन
- कार्य का लेखा।
1. परिस्थिति उत्पन्न करना
इस प्रणाली में छात्र को स्वयं प्रोजेक्ट चुनने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। अत: अध्यापक इस प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है, जिससे कि छात्रों को उचित प्रोजेक्ट चुनने में रुचि उत्पन्न हो।
2. योजना चुनना
छात्र स्वयं प्रोजेक्ट का चुनाव करते हैं। शिक्षक मार्गदर्शक का कार्य करता है। छात्रों का मत लेकर ही अध्यापक प्रोजेक्ट स्वीकार करता है।
3. कार्यक्रम बनाना
इस सोपान में छात्र कार्यक्रम का निर्माण करते हैं। अध्यापक छात्रों को कार्यक्रम निर्माण के लिए वाद-विवाद के अवसर प्रदान करता है। आवश्यकतानुसार वह छात्रों का पथ-प्रदर्शन भी करता है।
4. कार्यक्रम क्रियान्वित करना
इस पद में छात्र स्वयं कार्य करते हैं। छात्र क्रिया द्वारा सीखता है तथा अनेक विषयों के सम्बन्ध में ज्ञान ग्रहण करता जाता है। अध्यापक छात्रों का केवल मार्ग-दर्शन करता है और स्वयं प्रोजेक्ट में कोई कार्य नहीं करता।
5. कार्य का निर्णय या मूल्यांकन
इस पद में अध्यापक और छात्र परस्पर मिलकर निर्णय करते हैं कि उन्हें प्रोजेक्ट पूर्ण करने में कहाँ तक सफलता मिली है ? इस मूल्यांकन में छात्रों को आत्म-आलोचना का शिक्षण प्राप्त होता है। वे स्वयं निरीक्षण-परीक्षण द्वारा देखते और समझते हैं कि उनसे कहाँ भूल हुई है।
6. कार्य का लेखा
प्रत्येक छात्र के पास विवरण पुस्तिका रहती है, जिसमें वे कार्य का लेखा (Record) दर्ज करते हैं। इसमें अध्यापक देखता है कि छात्र ने निर्धारित कार्य को पूरा किया है या नहीं। अन्त में कार्य का मूल्यांकन दर्ज किया जाता है।
प्रोजेक्ट विधि के प्रकार (Kinds of project method)
किलपैट्रिक ने प्रोजेक्ट का वर्गीकरण चार प्रकार से किया है-
1. रचनात्मक प्रोजेक्ट
इसका उद्देश्य छात्रों में रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास करना है। इसमें छात्र नाव बनाने, मकान बनाने तथा पत्र लिखने आदि का कार्य करते हैं।
2. समस्यात्मक प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य छात्रों को बौद्धिक समस्याएँ हल करने के लिए प्रेरित करना है। अध्यापक छात्रों के आगे समस्या रखता है और छात्र उसे हल करने का प्रयास करते हैं।
3. रसास्वादन के प्रोजेक्ट
रसास्वादन के प्रोजेक्टों का उद्देश्य छात्रों में रसानुभूति का विकास करना होता है।
4. अभ्यास के प्रोजेक्ट
इन प्रोजेक्टों का उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि छात्र ने किस सीमा तक कौशल या ज्ञान को ग्रहण किया है?
प्रोजेक्ट प्रणाली के गुण या विशेषताएँ (Merits or characteristics of project method)
प्रोजेक्ट प्रणाली में ध्यान से देखने पर निम्न विशेषताएँ मिलेंगी-
1. जीवन से सम्बन्धित
प्रोजेक्ट प्रणाली में पुस्तकीय शिक्षा की अवहेलना करके छात्रों को जीवन की वास्तविकता की शिक्षा दी जाती है। छात्र जीवन की यथार्थ समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
2. चरित्र-निर्माण में सहायक
प्रोजेक्ट प्रणाली छात्रों का सर्वांगीण विकास करती है। छात्र विभिन्न समस्याओं को अपने प्रयास द्वारा हल करते हैं। अत: उनमें आत्म-विश्वास को भावनाओं का विकास होता है तथा वे कार्य का स्वयं मूल्यांकन भी करना सीखते हैं।
3. मनोवैज्ञानिक प्रणाली
प्रोजेक्ट प्रणाली प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) के सीखने के नियम पर आधारित है। ये नियम हैं- (1) तत्परता का नियम, (2) अभ्यास का नियम तथा (3) प्रभाव का नियम। प्रोजेक्ट प्रणाली में इन तीनों नियमों का प्रयोग सफलता के साथ किया जाता है।
4. प्रजातान्त्रिक भावनाओं पर आधारित
शिक्षा की यह प्रणाली पूर्णतया प्रजातन्त्रीय भावनाओं पर आधारित है। इस प्रणाली में छात्रों को विचार-विमर्श कर प्रोजेक्ट चुनने तथा कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। छात्र परस्पर सहयोग द्वारा किसी सामूहिक प्रोजेक्ट को पूरा करते हैं। इस प्रकार छात्रों में प्रजातन्त्रात्मक भावनाओं का विकास होता है।
5. मानसिक विकास में सहायक
प्रोजेक्ट प्रणाली में छात्र स्वयं सोचने, निरीक्षण करने तथा परस्पर वाद-विवाद द्वारा किसी समस्या को हल करने का प्रयास करते हैं। अत: उनका मानसिक विकास उचित दशा में होता है।
6. रुचिपूर्ण प्रणाली
यह प्रणाली रुचिपूर्ण है क्योंकि छात्र समस्या को हल करने में आनंद का अनुभव करते हैं तथा प्रयोजन की स्पष्टता उन्हें कार्य करने के लिए उत्साहित करती है।
7. हस्तकार्य के प्रति श्रद्धा
प्रोजेक्ट प्रणाली में छात्र प्रायः अधिकांश कार्य हाथ से करते हैं। अत: उन्हें हाथ से कार्य करने में आनन्द आता है। वे हाथ से कार्य करने में लज्जा अनुभव नहीं करते।
8. उत्तरदायित्व की भावना का विकास
इस प्रणाली में बालक अपने उत्तरदायित्व को समझने का पाठ सीखता है। जो प्रोजेक्ट वह हाथ में ले लेता है उसे पूर्ण करना अपना उत्तरदायित्व समझता है।
9. सह-सम्बन्ध पर आधारित
यह शिक्षा प्रणाली सह-सम्बन्ध पर आधारित है। इसमें विषयों के समन्वय पर बल दिया जाता है। विषयों को पृथक करके पढ़ाना अमनोवैज्ञानिक है।
10. विद्यालय और समाज से सम्बन्ध
यह प्रणाली विद्यालय और समाज के मध्य सम्बन्ध स्थापित करती है। प्रोजेक्ट का चुनाव सामाजिक वातावरण से किया जाता है तथा उसे पूरा भी सामाजिक वातावरण में किया जाता है।
सामाजिक योजनाओं (प्रोजेक्टों) के उदाहरण (Examples of social projects)
सामाजिक योजनाओं में निम्न प्रोजेक्टों या योजनाओं को प्रयोग में लाया जा सकता है-
- ग्राम,नगर या विद्यालय की स्वच्छता ।
- सामुदायिक सर्वेक्षण।
- सिंचाई के विभिन्न साधन।
- यातायात के साधन ।
- पोस्ट ऑफिस, सहकारी बैंक,सरकारी दुकान आदि का अध्ययन।
- ग्राम पंचायत का चुनाव, संगठन एवं कार्य प्रणाली।
- मानचित्र, मॉडल, समय रेखा तथा चित्र आदि का निर्माण।
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