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- Essays in Hindi /
Essay on Leadership : नेतृत्व पर छात्रों के लिए निबंध सैंपल्स
- Updated on
- जुलाई 20, 2024
Essay on leadership in Hindi : नेतृत्व की अवधारणा हमें प्राचीन काल से ही ज्ञात है, अशोक महान से लेकर आधुनिक लोकतांत्रिक नेताओं तक चाहे राजनीति हो या व्यापार, खेल हो या मनोरंजन, नेतृत्व मानव समाज का एक अनिवार्य हिस्सा है। नेतृत्व लोगों को एक सामान्य लक्ष्य की ओर प्रेरित करने और मार्गदर्शन करने की कला है।एक नेता के कार्य उसके शब्दों के अनुरूप होने चाहिए, और उसे अपनी ईमानदारी, पारदर्शिता और नैतिक व्यवहार का प्रदर्शन करना चाहिए।
This Blog Includes:
नेतृत्व पर निबंध 100 शब्दों में, नेतृत्व पर निबंध 200 शब्दों में, नेतृत्व के प्रकार, एक अच्छे लीडर में क्या गुण होना चाहिए, एक अच्छे लीडर होने के फायदे, कोई अच्छा लीडर कैसे बन सकता है.
100 शब्दों में Essay on leadership in Hindi इस प्रकार हैः
नेतृत्व में गुणों, मूल्यों और कार्यों का एक समूह शामिल होता है, जो लोगों और उनके देश के लाभ पर केंद्रित होता है। लीडर का पद धारण करने वाला व्यक्ति जीवन के हर पहलू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, संगठनों, समुदायों और राष्ट्रों की दिशा और सफलता को प्रभावित करता है। एक नेता के कार्य उसके शब्दों के अनुरूप होने चाहिए और उसे अपनी ईमानदारी, पारदर्शिता और नैतिक व्यवहार का प्रदर्शन करना चाहिए। विश्वास किसी भी सफल नेतृत्व की नींव है, और यह निरंतर नैतिक आचरण के माध्यम से निर्मित होता है।प्रभावी नेतृत्व के लिए ज़रूरी एक और विशेषता सहानुभूति है। सहानुभूति रखने वाले नेता अपनी टीम के सदस्यों की भावनाओं, ज़रूरतों और दृष्टिकोणों को समझते हैं और उनसे जुड़ते हैं।
200 शब्दों में Essay on leadership in Hindi इस प्रकार हैः
नेतृत्व में लोकतांत्रिक से लेकर निरंकुश तक विभिन्न पद और प्रकार शामिल हो सकते हैं, जहाँ नेता अपनी टीमों को प्रेरित और सशक्त बनाते हैं, एक ऐसा माहौल बनाते हैं जहाँ व्यक्ति फल-फूल सकते हैं और अपनी पूरी क्षमता हासिल कर सकते हैं। प्रभावी नेतृत्व में कुशल संचारकों की आवश्यकता होती है जो विचारों, अपेक्षाओं और प्रतिक्रिया को स्पष्ट और प्रेरक ढंग से व्यक्त कर सकें। वे अपनी टीम के इनपुट और चिंताओं को भी सक्रिय रूप से सुनते हैं। एक महान नेता पेशेवरों की एक टीम को जिम्मेदारियाँ और निर्णय लेने का अधिकार सौंपकर उन्हें सशक्त बनाता है। एक सफल नेता उस पूरे संगठन या टीम पर विचार कर सकता है जिसके साथ वह काम कर रहा है और उसकी ताकत, क्षमता, कमजोरियों और खतरों (और वे इनकी सहायता कैसे कर सकते हैं या इन पर काबू पा सकते हैं) के बारे में स्पष्ट जागरूकता विकसित कर सकते हैं। वे आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम को सही करने में सक्षम होंगे और यह पता लगाने के लिए अपने काम का आकलन करने में सक्षम होंगे कि यह संगठन की समग्र रणनीति और लक्ष्यों में कैसे फिट बैठता है। प्रभावी नेता सकारात्मक बदलाव लाने, अपने आस-पास के लोगों को प्रेरित करने और अपने नियमों और संगठनों में उद्देश्य और दिशा की भावना पैदा करने के लिए काम करते हैं।
नेतृत्व पर निबंध 500 शब्दों में
500 शब्दों में Essay on leadership in Hindi इस प्रकार हैः
नेतृत्व को अक्सर “किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दूसरों को मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करने की क्रिया” के रूप में परिभाषित किया जाता है।प्रभावशाली नेताओं में बुद्धिमत्ता, अनुकूलनशीलता, बहिर्मुखता, सहज आत्म-जागरूकता और सामाजिक क्षमता जैसे गुण होते हैं। यह बात तो सच है कि अच्छे गुण ही व्यक्ति को प्रभावशाली नेता बनाता हैं।
नेतृत्व कई प्रकार के होते हैं-
1. लोकतांत्रिक नेतृत्व
लोकतांत्रिक नेतृत्व शैली वह होती है जिसमें नेता टीम के सदस्यों से प्राप्त इनपुट के आधार पर निर्णय लेता है।वह अपनी टीम के सदस्यों के साथ लगातार संपर्क में रहता है और उनसे तुरंत कार्रवाई की उम्मीद करता है।
2. निरंकुश नेतृत्व
निरंकुश नेतृत्व लोकतांत्रिक नेतृत्व के बिल्कुल विपरीत है। इस मामले में, नेता टीम की ओर से सभी निर्णय लेता है, बिना उनसे कोई इनपुट या सुझाव लिए। नेता के पास सभी अधिकार और जिम्मेदारी होती है।
3. परिवर्तनकारी नेतृत्व
परिवर्तनकारी नेतृत्व का मतलब है टीम के सदस्यों को अपने मानक को बढ़ाने और लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित करके व्यवसाय या समूहों को बदलना, जिसके बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे इसके लिए सक्षम हैं।
4. लेन-देन संबंधी नेतृत्व
लेन-देन संबंधी नेतृत्व प्रत्येक टीम सदस्य के लिए भूमिकाएं और जिम्मेदारियां स्थापित करता है और निर्धारित समय पर काम पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
अच्छे नेता में अक्सर आत्मविश्वास, विनम्रता का एक शक्तिशाली मिश्रण होता है आत्मविश्वास बहुत जरूरी होता है, जो एक नेता को जोखिम उठाने, कठिन निर्णय लेने और अपने विश्वासों पर अडिग रहने का साहस प्रदान करता है फिर भी यह आत्मविश्वास अहंकार में नही बदलता। अच्छे नेता में विनम्रता बहुत ज्यादा होती है, और अपनी सीमओं के बारे में लगातार जागरूक होते हैं। इसके अलावा एक अच्छे नेता के अंदर बहुत अधिक ईमानदारी होती है।
अच्छे लीडर होने के कई फायदे होते है जैसे, जब लीडर अच्छा होता है तो अपने क्षेत्र में चहुमुखी विकास कराता है, अपनी जनता की समस्याएं सुनता है और उनकी समस्याओं का समाधान करता है, अच्छा लीडर जनता के प्रति ईमानदारी से काम करता है और बिना स्वार्थ के जनता की समस्याओं का समाधान करता है। इससे जनता को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचता है।
1. एक अच्छा संचारक होना चाहिए। 2.आत्मविश्वास होना चाहिए। 3.व्यक्ति को अपनी कथनी और करनी पर विश्वास होना चाहिए। 4.टीम के साथ अच्छा रिश्ता। 5.एक नेता को अपने पद के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि वह जिम्मेदारी ले ताकि वह विभिन्न चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपट सके जिनका उसे अनिवार्य रूप से सामना करना पड़ेगा।
एक अच्छा नेता बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण आत्मविश्वास है।
इस तरह के नेता अपने कर्मचारियों की ताकत और जरूरतों से वाकिफ होते हैं। वह उपलब्धि के लिए एक दृष्टिकोण निर्धारित करके वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करते हैं।
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Chief Executive: Meaning and Functions | Hindi | Public Administration
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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Necessity of Chief Executive 2. Various Forms of Chief Executive 3. Functions and Powers.
मुख्य कार्यपालिका का अर्थ एवं आवश्यकता (Meaning and Necessity of Chief Executive):
किसी भी संगठन के शीर्ष पर उस संगठन के प्रमुख का पद होता है जो संगठन के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों तथा उनकी कार्यविधियों पर नियन्त्रण रखता है । विभव संगठनों में प्रमुख को विभिन्न नामों से जाना जाता है व्यावसायिक संगठन में शीर्षस्थ प्रमुख को ‘महाप्रबन्धक’ अथवा ‘सामान्य प्रबन्धक’ (General Manager) के नाम से सम्बोधित किया जाता है ।
संगठन के पर्यवेक्षण निर्देशन व निरीक्षण का उत्तरदायित्व उसी पर होता है । इसी प्रकार राज्य के प्रशासकीय संगठन का प्रमुख ‘मुख्य कार्यपालिका’ (Chief Executive) कहलाता है प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र का नेतृत्व वही करता है । विश्व के विभिन्न देशों में कार्यपालिका का स्वरूप वहाँ की संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप भिन्न-भिन्न होता है ।
मुख्य कार्यपालिका से अभिप्राय उस व्यक्ति विशेष या व्यक्ति समूह से है जो किसी भी संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था का नेतृत्व करता है तथा संगठन के संचालन हेतु अन्तिम रूप से उत्तरदायी होता है ।
वह संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर होता है । डिमॉक (Dimock) के अनुसार- ”मुख्य कार्यपालक संगठन में कठिनाइयों का अन्त करने वाला पर्यवेक्षक एवं आगामी कार्यक्रम का प्रवर्तक होता है ।” मुख्य कार्यपालक की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. बीड लिखते हैं- ”उच्च स्तरीय नीति के विकास में नेतृत्व प्रशासकीय प्रबन्धक के साथ इतना घुल मिल गया है कि अधिकांस सरकारों में तथा प्राय: सभी व्यक्तिगत संगठनों में दोनों कार्यों को जानबूझकर एक ही व्यक्ति को सौंप दिया जाता है ।”
इसी तथ्य के आधार पर मुख्य कार्यपालक की स्थिति अन्य अरिष्ट अधिकारियों की अपेक्षा उल्लेखनीय बन गई है व्यवहार में यह अनुभव किया जाता रहा है कि जब भी प्रशासनिक एकता कमजोर हुई है तब-तब प्रशासन के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है । इससे मुख्य कार्यपालिका के पद को और अधिक महत्व दिया जाने लगा है । प्रशासन में एकता, सामंजस्य, सहयोग व समरूपता के लिये यह आवश्यक है कि मुख्य कार्यपालिका के पद को शक्ति-सम्पन्न बनाया जाये ।
मुख्य कार्यपालिका के पद की आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों में निहित है:
1. प्रशासनिक अनियमितताओं, विलम्ब एवं भ्रष्टाचार को दूर करने हेतु ।
2. प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता लाने हेतु ।
3. जनता के अधिकाधिक कल्याण एवं उत्तम सेवाएँ प्रदान करने हेतु ।
4. देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने हेतु ।
5. जातीय, साम्प्रदायिक एवं प्रादेशिक आदि चुनौतियों का सामना करने हेतु ।
मुख्य कार्यपालिका के विभिन्न प्रकार (Various Forms of Chief Executive):
किसी भी देश की मुख्य कार्यपालिका का स्वरूप वहाँ की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार तय किया जाता है जैसा कि अध्याय के प्रारम्भ में वर्णित किया गया है कि मुख्य कार्यपालिका को सामान्यतया निम्नलिखित तीन समूहों में वर्गीकृत किया जाता रहा है:
1. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका,
2. नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका,
3. एकल एवं बहुल कार्यपालिका ।
1. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका (Parliamentary and Presidential Executive):
संसदात्मक शासन-व्यवस्था में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है । इसमें कार्यपालिका शक्ति किसी एक व्यक्ति में निहित न होकर मन्त्रिमण्डल या कैबिनेट में निहित रहती है, अत: इसे ‘मन्त्रिमण्डलात्मक शासन’ भी कहते हैं । साथ ही कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है, अत: इसे ‘उत्तरदायी शासन’ भी कहा जाता है ।
संसदात्मक शासन के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप में भनता के कुछ लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं । व्यवहार में इस व्यवस्था में शासन का प्रधान ‘नाममात्र का प्रधान’ (Nominal Head) होता है जो कि राजा या राष्ट्रपति होता है । शासन का वास्तविक संचालन वास्तविक प्रधान मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है ।
संसदात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ ( Chief Characteristics of Parliamentary Executive):
संसदात्मक शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका (Nominal and Real Executive):
राज्य का प्रधान नाममात्र की कार्यपालिका होता है, जबकि वास्तविक कार्यपालिका मन्त्रिपरिषद् होती है । नाममात्र की कार्यपालिका के उदाहरण हैं- इंग्लैण्ड का सम्राट व भारत का राष्ट्रपति । सैद्धान्तिक दृष्टि से ये शक्ति-सम्पन्न होते हैं, किन्तु व्यवहार में इन शक्तियों का प्रयोग वास्तविक कार्यपालिका अर्थात मन्त्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है ।
(ii) कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी (Executive Responsible towards Legislative):
संसदात्मक शासन में व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित होती है । निम्न सदन में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल का नेता प्रधानमन्त्री का पद ग्रहण करता है तथा राजनीतिक दल में से ही मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है । वास्तविक कार्यपालिका अथवा मंत्रिपरिषद अपने कार्यों के लिए अन्तिम रूप से इसी लोकप्रिय सदन के प्रति उत्तरदायी होती है ।
(iii) अनिश्चित कार्यकाल (No Fixed Tenure):
संसदात्मक शासन में कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है । यदि व्यवस्थापिका द्वारा कार्यपालिका के प्रति अविश्वास प्रकट किया जाता है, तो कार्यपालिका को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है ।
(iv) व्यक्तिगत उत्तरदायित्व (Personal Responsibility):
मन्त्रिमण्डल के सदस्य अपने-अपने विभागों के अध्यक्ष होते हैं । विभाग का कार्य-संचालन उन्हीं के नेतृत्व में सम्पन्न होता है । इस प्रकार विभाग के कार्यों के लिये वे व्यक्तिगत रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।
(v) सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility):
मन्त्रिमण्डल के सदस्य सामूहिक रूप से भी व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं । नीति सम्बन्धी प्रश्न पर व्यवस्थापिका (लोकसभा) में किसी एक मन्त्री की पराजय सारे मन्त्रिमण्डल की पराजय मानी जाती है । मन्त्रिमण्डल के सदस्य ‘एक साथ डूबते व तैरते हैं ।’
( vi) प्रधानमन्त्री का शासन (Rule of Prime Minister):
संसदीय शासन में प्रधानमन्त्री को वास्तविक नेता माना जाता है । वह निम्न सदन में बहुमत दल का नेता होता है । इंग्लैण्ड में लोक सदन (House of Commons) तथा भारत में लोकसभा (House of People) में बहुमत दल का नेता प्रधानमन्त्री के रूप में नियुक्त किया जाता है ।
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ ( Chief Characteristics of Presidential Executive):
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं:
(a) इकहरी कार्यपालिका (Single Executive):
अध्यक्षात्मक शासन में नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका में कोई अन्तर नहीं होता है । समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में केन्द्रित होती हैं तथा वही वास्तविक कार्यपालिका होता है । वह राज्य भी करता है और शासन भी ।
(b) कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका का पृथक्करण (Separation of Executive and Legislature):
इसमें कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में पृथक्करण होता है । यह मॉण्टेस्क्यू के ‘शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त’ पर आधारित है । कार्यपालिका के सदस्य न तो व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं और न ही उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं । व्यवस्थापिका व कार्यपालिका एक दूसरे से स्वतन्त्र रहती हैं ।
(c) कार्यकाल की निश्चितता (Fixed Tenure):
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित होता है । कार्यपालिका प्रधान (राष्ट्रपति) का निर्वाचन एक निश्चित अवधि के लिये किया जाता है । व्यवस्थापिका के विश्वास-अविश्वास का उसके कार्यकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । कार्यपालिका प्रधान को एक निश्चित प्रक्रिया ‘महाभियोग’ के द्वारा ही पदच्युत किया जा सकता है ।
2. नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका (Nominal and Real Executive):
नाममात्र की कार्यपालिका से तात्पर्य उस कार्यपालिका से है जिसे संविधान द्वारा सर्वोच्च प्रशासनिक शक्ति प्रदान की गयी हो किन्तु व्यवहार में जिसका प्रयोग किसी अन्य के द्वारा किया जाता हो । प्रशासन के समस्त कार्य उसी के नाम से संचालित किए जाते हैं जबकि उन कार्यों के सम्पादन में वास्तविक शक्ति का प्रयोग वास्तविक कार्यपालिका द्वारा किया जाता है ।
भारत व ब्रिटेन की शासन व्यवस्थाओं में इसका अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है । भारत में ‘राष्ट्रपति’ तथा ब्रिटेन में ‘सम्राट’ का पद नाममात्र की कार्यपालिका का है । वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद् के हाथों में रहती है ।
संक्षेप में, संसदीय शासन-व्यवस्था में नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका का अस्तित्व देखने को मिलता है ।
संवैधानिक दृष्टि से राज्य प्रमुख समस्त शक्तियों का सोत है जो कि नाममात्र की कार्यपालिका कहलाता है, क्योंकि उसको प्रदत्त समस्त शक्तियों का वास्तव में उपयोग प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद द्वारा किया जाता है । वही वास्तविक कार्यपालिका कहलाती है । अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है ।
3. एकल एवं बहुल कार्यपालिका (Single and Plural Executive):
एकल कार्यपालिका से तात्पर्य उस कार्यपालिका संगठन से है जिसमें कार्यपालिका सम्बन्धी समस्त शक्तियाँ एक ही व्यक्ति में निहित होती हैं, जबकि इसके विपरीत बहुल कार्यपालिका में कार्यपालिका की शक्तियाँ विभिन्न व्यक्तियों में बँटी होती हैं । वस्तुत: ये दोनों संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका के ही रूप हैं ।
एकल कार्यपालिका का आदर्श स्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका ब्राजील एवं दक्षिणी अमेरिका में देखने को मिलता है जबकि बहुल कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण स्विट्जरलैण्ड की शासनव्यवस्था में देखा जा सकता है । वर्तमान में अमेरिका का राष्ट्रपति एकल कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण है ।
इसके विपरीत स्विट्जरलैण्ड में कार्यपालिका सत्ता सात सदस्यों की एक संघीय परिषद् में निवास करती है ओर यह संघीय परिषद् सामूहिक रूप से राज्य की कार्यपालिका प्रधान के रूप में कार्य करती है । कतिपय विद्वानों के मतानुसार भारत व इंग्लैण्ड के संसदीय शासन भी एकल कार्यपालिका के उदाहरण हैं ।
मुख्य कार्यपालिका के कार्य एवं शक्तियाँ (Functions and Powers of the Chief Executive):
मुख्य कार्यपालिका को सामान्यतया दो प्रकार के कार्य सम्पादित करने पड़ते हैं :
1. राजनीतिक कार्य एवं
2. प्रशासनिक कार्य ।
1. राजनीतिक कार्य (Political Functions):
मुख्य कार्यपालिका के राजनीतिक कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) मुख्य कार्यपालिका को व्यवस्थापिका एवं अपने राजनीतिक दल के साथ पूर्ण समन्वय एवं सहयोग की स्थिति बनाकर रखनी होती है । यह आवश्यक है, क्योंकि कार्यपालिका का अस्तित्व इन दोनों की स्वीकृति पर आवश्यक है । प्रशासन के सफल संचालन एवं वित्त की आवश्यकता की पूर्ति हेतु भी इन दोनों का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है ।
(ii) निर्धारित योजनाओं की क्रियान्विति करना भी मुख्य कार्यपालिका का दायित्व है । लोक कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करके ही जन-समर्थन की प्राप्ति की जा सकती है ।
(iii) मुख्य कार्यपालिका जन-इच्छाओं एवं जन-समस्याओं को जानने तथा विशाल जमनत तैयार करने की दिशा में भी प्रयासरत रहती है क्योंकि ‘जनमत’ ही आधुनिक लोकतन्त्र का प्रमुख आधार है ।
(iv) मुख्य कार्यपालिका आवश्यकता पड़ने पर व्यवस्थापिका एवं जनता का मार्ग-निर्देशन भी करती है ।
2. प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions):
मुख्य कार्यपालिका के प्रशासनिक कार्यों के सम्बन्ध में विभिन्न मत प्रस्तुत किये जाते हैं ।
लूथर गुलिक के पोस्टकॉर्ब ( POSDCORB) शब्द के अनुसार कार्यपालिका के प्रशासनिक कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) नियोजन,
(ii) संगठन,
(iii) कार्मिकों की व्यवस्था,
(iv) निर्देशन,
(v) समन्वय,
(vi) प्रतिवेदन,
(vii) बजट ।
प्रो. वीग ने मुख्य कार्यपालिका के कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया है:
(a) प्रशासनिक नियोजन व निर्देशन तथा
(b) समन्वय एवं प्रशासनिक प्रतिवेदन ।
एल. डी. ह्वाइट के अनुसार- मुख्य कार्यपालिका आठ प्रकार के कार्य करती है:
(i) अनुकूल वातावरण का निर्माण,
(ii) नीति-निर्माण,
(iii) निर्देश देना,
(iv) बजट बनाना,
(v) कार्मिकों का चयन,
(vi) निरीक्षण एवं नियन्त्रण,
(vii) पद-विमुक्ति एवं
(viii) जन-सम्पर्क ।
चेस्टर आई. बर्नार्ड के मतानुसार- किसी भी संगठन का मुख्य कार्यकारी निम्नलिखित कार्यों को सम्पादित करता है:
(a) सम्प्रेषण प्रणाली को बनाये रखना,
(b) व्यक्तियों से आवश्यक सेवाएँ प्राप्त करना तथा
(c) संगठन के उद्देश्यों व लक्ष्यों का निर्धारण करना ।
विभिन्न मतों के विश्लेषण के आधार पर मुख्य कार्यपालिका के अग्रलिखित प्रशासनिक कार्य बताये जा सकते हैं:
(i) नीति निर्धारण ( Policy Making):
प्रशासनिक नीति की रूपरेखा तैयार करने का दायित्व मुख्य कार्यपालिका के ऊपर होता है । सामान्य एवं विशिष्ट नीतियों के निर्धारण के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निर्णय मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही लिए जाते हैं ।
प्रबन्ध नीति के गम्भीर प्रश्नों का निर्णय भी वही करती है । सैद्धान्तिक दृष्टि से नीति-निर्माण का कार्य व्यवस्थापिका का समझा जाता है, किन्तु व्यवहार में नीति-निर्माण में सर्वाधिक भागेदारी मुख्य कार्यपालिका की ही होती है ।
(ii) नियोजन (Planning):
किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसकी योजना तैयार करना नियोजन कहलाता है । मुख्य कार्यपालक अर्थात् प्रधानमन्त्री का यह दायित्व होता है कि वह शासन के कुशल संचालन हेतु मन्त्रियों की सहायता से नीति-निर्माण करें । इन नीतियों को अनुमोदन हेतु व्यवस्थापिका के समक्ष रखा जाता है । व्यवस्थापिका द्वारा अनुमोदित होने के उपरान्त ये नीतियाँ कानून का रूप ले लेती हैं ।
(iii) संगठन निर्माण (Establishment of Organization):
प्रशासनिक नीतियों के क्रियान्वयन हेतु प्रशासनिक सफलता प्राप्त करने के लिए एक सुव्यवस्थित संगठन का होना परम आवश्यक है । संगठन की रूपरेखा व्यवस्थापिका निर्धारित करती है किन्तु उसका आन्तरिक स्वरूप कार्यपालिका द्वारा निर्धारित किया जाता है । प्रशासनिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न उपकरण यथा ब्यूरो, निगम, समितियाँ आदि नियुक्त की जाती हैं । किन्हीं विशिष्ट लक्ष्यों की पूर्ति हेतु समय-समय पर आयोगों की नियुक्ति भी की जाती है ।
(iv) कार्मिकों की व्यवस्था (Staffing):
मुख्य कार्यपालिका के शासन के संचालन हेतु पदाधिकारियों की नियुक्ति करती है । उदाहरणार्थ भारत में राष्ट्रपति राज्यपालों उच्चतम न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राजदूतों एवं संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही की जाती है । जिन पदाधिकारियों को वह नियुक्त करती है उन्हें पदच्युत करने का भी अधिकार रखती है ।
(v) निर्देशन (Direction):
मुख्य कार्यकारी का एक महत्वपूर्ण दायित्व अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना है । वह सम्पूर्ण प्रशासन के कार्यों का निरीक्षण व नियन्त्रण करता है । किसी भी विभाग के कार्यों की जाँच-पड़ताल करने का अधिकार मुख्य कार्यकारी को प्राप्त होता है । वह नियमों, विनियमों एवं आदेशों के द्वारा प्रशासन का निर्देशन करता है ।
(vi) समन्वय (Co-Ordination):
संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य समन्वय स्थापित करना मुख्य कार्यपालिका का प्रमुख कर्त्तव्य है । समन्वय की प्रक्रिया में यह देखा जाता है कि विभिन्न इकाइयों के मध्य सहयोग की भावना होनी चाहिए तथा कार्यों में दोहराव (Duplication) नहीं होना चाहिए । निम्न स्तरों में उत्पन्न संघर्ष या मतभेद का निवारण भी मुख्य कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है ।
(vii) बजट बनाना (Budgeting):
प्रशासनिक दायित्वों की पूर्ति हेतु धन की आवश्यकता होती है । इस हेतु कार्यपालिका बजट तैयार करके व्यवस्थापिका के सम्मुख प्रस्तुत करती है । व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद इसे क्रियान्वित किया जाता है । राज्य के सम्पूर्ण संसाधनों का आकलन करने के बाद ही बजट तैयार किया जाता है । बजट पास होने के बाद राज्यों एवं विभिन्न विभागों के मध्य आवश्यकतानुसार धन वितरित किया जाता है ।
(viii) जन-सम्पर्क (Public Relation):
आधुनिक लोक-कल्याणकारी राज्य में जनहित को सर्वोपरि महत्व दिया जाता है जनहित तभी सम्भव हो सकता है जबकि जन-आकांक्षाओं की पूर्ति की जाये ।
जन-आकांक्षाओं एवं जनता की आवश्यकताओं से परिचित होने के लिए जन-सम्पर्क अपरिहार्य है । मुख्य कार्यपालिका द्वारा जन-सम्पर्क हेतु निम्नलिखित साधन प्रयोग में लाये जाते हैं- दूरदर्शन, आकाशवाणी, समाचार-पत्र, पत्रकार सम्मेलन आदि । इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए ‘जन सम्पर्क विभाग’ की स्थापना की जाती है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुख्य कार्यपालिका को व्यापक अधिकार व दायित्व सौंपे जाते हैं जिनकी पूर्ति पर्याप्त शक्ति स्रोतों एवं वैयक्तिक गुणों के आधार पर ही सम्भव है । उसे व्यापक रूप से संवैधानिक शक्तियाँ सौंपी जाती हैं ।
वैधानिक समर्थन के साथ ही जन-समर्थन व जन-सहयोग भी परमावश्यक है । इसके अतिरिक्त, मुख्य कार्यपालिका में व्यक्तिगत गुणों यथा शारीरिक सामर्थ्य, विवेक, स्थिर व प्रखर बुद्धि, संयम, सहनशीलता, वाक्पटुता आदि गुणों का होना भी आवश्यक है उसमें एक अच्छे नेता के गुण भी होने चाहिए ।
नेतृत्व के आधार पर ही सभी अधिकारियों को एकता के सूत्र में बाँधा जा सकता है तथा उन्हें अपने विचारों व नीतियों के अनुकूल ढाला जा सकता है । एक अच्छे नेता के रूप में तीक्ष्ण बुद्धि होनी चाहिए जिससे कि देश की ज्वलन्त समस्याओं का वह सहज ही समाधान प्रस्तुत कर सके । मुख्य कार्यकारी का दृष्टिकोण हर प्रकार से उदार व परिपक्व होना चाहिए ।
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नेतृत्व पर निबंध। leadership essay in hindi
नेतृत्व की आवश्यकता समाज या व्यक्ति विशेष सभी को होती है। समाज या व्यक्तिगत व्यक्तिव्य का सभी विकास एक स्वस्थ नेतृत्व में ही संभव है। आज आप इस पोस्ट में leadership essay in hindi पढ़ेंगे। नेतृत्व पर निबंध स्कूल और कॉलेज में जरूर पुछा जाता है। इस हिंदी निबंध को आप essay on leadership in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।
लीडरशिप जिसे हिंदी में नेतृत्व कहा जाता है। लीडरशिप एक कला है। ये वह गुण है जो 100 में से हज़ारों में से किसी एक के पास होता है।जो व्यक्ति बचपन से जिस माहौल में रहता है उसमे वैसा ही गुण विकसित हो जाते है। जैसा हम देखते है, जैसा हम सीखते है, जैसा हम करते है उससे हमे अपने नेतृत्व के गुण के बारे में ज्ञात होता है। नेतृत्व के बहुत सारे पहलू है पर सबसे विशेष है ‘ सरल रहते हुए निर्देश देना।’ जिससे किसी व्यक्ति के हृदय को चोट न पहुंचे। जिस व्यक्ति में लीडरशिप के गुण होते है उसमे निर्णय लेने की अत्यधिक क्षमता होनी चाहिए। लीडरशिप में अनेकों लीडर्ड में से वो लीडर सबसे बेहतर माना जाता है जो बाकी के लोगो से कुछ अलग कर दिखाता है।
प्रस्तावना- सही नेतृत्व वाले व्यक्ति में लोगो को प्रभावित करने की क्षमता होती है। लीडरशिप को धारण करने वाला व्यक्ति सबमे अलग होता है। ऐसे व्यक्ति को अपने कर्तव्य ज्ञात होते है। वो समय का पालन करता है। अपने कार्य के प्रति सजग होता हैं।लीडरशिप वाले व्यक्ति के अनेक अनुयायी होते है। लोग उन्हें अपना आदर्श मान कर उनके जैसा बनने का प्रयास करते है। हमने अपनी निजी जिंदगी में ज़रूर देखा होगा ऐसा व्यक्ति जिसके हम अनुयायी है, और उनमें नेतृत्व का गुण अवश्य होगा। नेतृत्व का गुण हमे भीड़ से अलग करता हैं। हम हर छोटे बड़े काम को आसानी से अंजाम दे सकते है। नेतृत्व करने वाले व्यक्ति मे अपने काम निकलवाले की क्षमता होती है। वे आदेश देकर और लोगों से जुड़ कर कार्य सिद्ध करते है। एक अच्छे लीडर में हमेशा सीखने की चाह होती है। वे ये नही सोचते कि ये हमसे छोटा व्यक्ति है या हमारे यहां नौकरी करता है। मैं इससे कैसे सीख सकता हूँ। वे हर छोटे बड़े लोग से हर छोटी बड़ी चेज़ से सीख लेते है। अपने अनुभव से बेहतर कार्य करते है। हर रोज़ किसी घटना से सीखते है।
लीडरशिप और पढ़ाई का संबंध- ये एक ऐसा विषय है जो हमारे अंदर साहस भर देता है। हमारे आस पास ऐसे ना जाने कितने लोग है जो आंठवी भी पास नही है। उनके पास शिक्षा के कोई साधन नही। किसी के पास पैसे नही है तो किसी के पास आने जाने का साधन नही है। किसी को थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना आता है तो किसी को बिल्कुल ही नही आता। हां इन सबसे भी अलग कुछ बच्चे होते है जिनके पास पढ़ने के लिए पैसा तो होता है, वे स्कूल भी जाते है, पर उन्हें चीज़े समझ नही आती। उनकी पढ़ाई में कम रुचि होती है। ऐसे व्यक्ति कई बार निराश पाये जाता है।उसे अपने आप पर भरोसा नही होता। वो ये सोचता है कि उसके अंदर लीडरशिप के गुण कभी भी नही आ सकते है। पर सच तो ये है कि किसी भी व्यक्ति में लीडरशिप के गुण हो सकते है बस उसे अपने आप पर कार्य करने की आवश्यकता है। कोई भी व्यक्ति लीडरशिप के गुण उत्पन्न कर सकता है अगर वो अपने आप से सीखना चाहे। हम उदहारण के तौर पर आईन्स्टीन को देख सकते हैं। उन्हें स्कूल से निकल दिया गया था क्योंकि वो पढ़ाई में कमज़ोर थे। परंतु आज हम सब उनका नाम बखूबी जानते है एवं उन्हें मानते भी है। आज उनके करोड़ो अनुयायी है। उन्होंने खुद अपने आप को इस कदर बनाया। हम भी बिना स्कूल जाए अपने आप मे ये गुण विकसित कर सकते है। कुछ करने की लगन हमे सब करने के लिए प्रेरित करेगी। हमे हमेशा ये सोचते रहना चाहिए कि हम क्या सीख रहे है।किस माहौल में जी रहे है। कितने सकारात्मक है।निर्णय लेने की क्षमता कितनी बेहतर है।अपनी बात पर रह कर उसे निभा पाते है या नही। हमे किताबें पढ़ने की आदत डालनी चाहिएं। इससे हमारा तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित होता है जो नेतृत्व करने में और सही दिशा देने में प्रभावी होता है। सुविधाओं के अभाव में भी हमने कितने लोगों को देखा है, जो मेहनत कर लीडरशिप की कला हासिल कर सफल व योग्य बनते है। उनके आगे पीछे कोई नही होता उनकी मदद करने वाला या मार्ग दर्शन देने वाला। वे खुद लीडरशिप के गुण विकसित करते है। और लाखों करोड़ों लोग उनके अनुयायी बनते है।
नेतृत्व की भूमिका- (कहाँ- कहाँ काम आता है?) दुनिया के हमारे सबसे प्यारे देश भारत मे हम रह रहे है। तो ये कहना ठीक होगा कि दुनिया को भी कोई चला रहा है और भारत को भी। दुनिया के नियम, कानून, कायदे सभी का कोई व्यक्ति नेतृत्व कर रहा है।भारत के अलावा सारे देश के भी कोई मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, नेता, राजनेता देश का नेतृत्व कर रहे है। वे देश के मुखिया है जिनके पास लीडरशिप गुण है। आज के युग मे हर क्षेत्र में लीडरशिप के गुण की आवश्यकता होती है।चाहे वो देश को चलने की बात हो, उद्योग को चालाने की बात हो, खेल के क्षेत्र की बात हो, अभिनेता या अभिनेत्री बनने की बात हो। सभी जगह पर ऐसे लोगो को चुना जाता है जिनके पास नेतृत्व के गुण हो। जो लोगो को आदेशित कर सकता हो और लाखों लोगों को संभाल सकता हो। हमारे देश मे इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस, इंडियन पुलिस सर्विस सभी मे वही लोग चुने जाते है जो नेतृत्व करने और लोगो को सम्भालने में सही दिशा देने का काम करते है। हर जगह पर ऐसे ही लीडरशिप के गुण वाले व्यक्ति का चयन होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को ही स्थान दिया जाता हैं। नेतृत्व एक कला है जादू नही। विभिन्न क्षेत्र हमने देखे जिसमे ये कला की बहुत ज़्यादा आवशकता हैं। एक धंधे को चलाने में भी नेतृत्व की आवश्यकता होती है। एक समूह को एक लक्ष्य की और केंद्रित एक नेतृत्व करने वाला उद्योगपति ही कर पाता है। इसके साथ महिलाओं की ज़िंदगी मे नेतृत्व सबसे महत्वपूर्ण है। जिस महिला में नेतृत्व का गुण है वह अपना नाम से ही लाखों अनुयायी बनाती है। महिलाओं की ज़िंदगी मे नेतृत्व का उछाल अति आवश्यक है। अपनी ज़िंदगी में हम सही नेतृत्व से या लीडरशिप के गुण से कहा से कहा पहुंच सकते है। भीड़ से अलग होने का आसन तरीका है लीडरशिप के गुण होना।
कुशल नेतृत्व का रूप- अच्छे नेतृत्व वाले व्यक्ति सबमे अलग होते है। हम सब नेतृत्व को समझते है पर अच्छा नेतृत्व कैसा हो ये शायद कम ही लोग जानते है। जब हम कोई बिज़नेस करते है, वहां एक समूह होता है। और उनका कोई एक व्यक्ति बॉस या मुखिया होता है। उस व्यक्ति में नेतृत्व के गुण तो है लेकिन उसका नेतृत्व अच्छा है या नही ये कुछ खास बातों से जानेंगे। सबसे पहले हमारे दिमाग मे यही आता है कि हम कंपनी के टर्नओवर या उसके नाम से जान सकते है कि ये कंपनी कितनी विख्यात है। साथ ही वो कितना कमाती है। लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसी विशेषताएं है जो अच्छे नेतृत्व की होती है। उसमें सबसे पहले होती है कि वो अपने से नीचे पद के व्यक्ति से कैसे पेशाता है। जो व्यक्ति अपने यहां काम करने वाले लोगो से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता है उसे हम कुशल नेतृत्व वाला व्यक्ति कहते है।काम करने वाले व्यक्ति की समस्या को समझे और उसका समाधान करे। ऐसे बर्ताव करे जिससे वो अपने मन की बात आपके सामने रख सके।कुशल नेतृत्व वाले व्यक्ति का व्यवहार सरल से भी सरल रहता है। वे कोई भी परिस्थिति के लिए पूर्णतः तैयार रहते है। समस्या का जड़ से समाधान करने की कोशिश करते है। हर उतार चढ़ाव के लिए तत्पर रहते है। सभी की सहमति के साथ वे निर्णय लेते है। अपनी उपलब्धियों में नीचे पद के लोगो को भी सम्मलित करते है। वे आज तो कार्य करते ही है। परन्तु वे दूरदृष्टि का भी ज्ञात रखते है। आने वाले सालों में कैसे कार्य करना है उसकी भी तैयारियां करते है।अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते है। अपने एम्प्लोयी के साथ हर अच्छे बुरे वक्त में खड़े होते है। ऐसे व्यक्ति को कुशल नेतृत्व वाला या सही लीडरशिप गुण वाला व्यक्ति माना जाता है। ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व से सफलता और खुशी दोनो कहि नही भगति। मुखिया और काम करने वाले लोग दोनो प्रसन्न रहते है।
उपसंहार- आज के युग मे बच्चों को नेतृत्व के गुण देना बेहद आवश्यक हैं।इससे उनका भविष्य उज्ज्वल होने की पूरी संभावना होती हैं। वे जहां भी जाएंगे अपनी छाप छोड़ कर आएंगे। लीडरशिप का गुण हम में से कम लोग के के पास होता हैं। लेकिन जो भी चाहे वो इसे मेहनत और लगन से हासिल कर सकता है।
आखिर कोई भी काम को नामुनकिन न समझते हुए मुमकिन समझना ये भी तो लीडरशिप या नेतृत्व का ही गुण है।
हमें आशा है आपको leadership in hindi पसंद आया होगा। आप इस निबंध को leadership meaning in hindi या what is leadership in hindi के रूप में भी प्रयोग कर सकते है। इस leadership hindi निबंध में आप सभी प्रकार की leadership qualities in hindi भी विस्तार से समझ सकते है और इसका प्रयोग अपने अनुसार कर सकते है।
मेरे पसंदीदा नेता पर निबंध (My Favourite Leader Essay in Hindi)
इस दुनिया में सभी एक समान होते है, पर वो अपनी खूबियों या अपनी विशेषताओं के साथ इस जहाँ में अपनी अलग पहचान बनाते है। ऐसे व्यक्ति कुछ विशेष और अद्वितीय गुणों को साथ में लेकर पैदा होते है। सबकी अपनी एक अलग पसंद होती है, हर किसी के रहने, खाने, सोचने इत्यादि भिन्न होते है। मुझे कुछ और तो आपको कुछ और पसंद होगा। मगर हम एक नेता के पसंद की बात करें तो हर किसी के दिमाग में अपने पसंदीदा नेता की तस्वीर बन गयी होगी। वो ऐसा नेता होगा जो आपके दिल, मन और दिमाग को बहुत ही प्रभावित करता होगा। बात अपने सबसे पसंदीदा नेता की करें तो मेरे सबसे प्रिय नेता है “श्री लाल बहादुर शास्त्री”।
मेरे पसंदीदा नेता पर दीर्घ निबंध (Long Essay on My Favourite Leader in Hindi, Mere Pasandida Neta par Nibandh Hindi mein)
Long essay – 1700 words.
कोई भी नेता विशेष व्यक्तित्व के साथ पैदा होता है। उनके अंदर कुछ ऐसे गुण निहित होते है जो उन्हें दूसरों से अलग बनाते है। एक नेता अपने विशेष गुणों और व्यक्तित्व के साथ ही हमें प्रेरित करता है। वे हमें हर क्षेत्र में दूसरों से अलग और बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है।
हम सब उनके व्यक्तित्व, उनके बोलने के तरीके, काम करने के तरीके इत्यादि से प्रभावित होते हैं। उनके शब्दों में हमें एक अलग ही जोश दिखाई देता है। इस कारण से हम उनका अनुसरण करते है और हम उन्हें अपना नेता मानते है। भारत दुनिया में एक ऐसा महान देश है जहां कई ऐसे नेता हुए है जिन्होंने अपने काम के द्वारा दुनिया भर में भारत का सर गर्व से ऊँचा किया है। ऐसे नेता न केवल भारत के लोगों बल्कि पूरी दुनिया को अपने कार्यों से हमेशा प्रेरणा देते है।
श्री लाल बहादुर शास्त्री – एक महान भारतीय नेता
लाल बहादुर शास्त्री ने दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में भारत की सेवा की है। प. जवाहर लाल नेहरू की अकस्मात मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था। लाल बहादुर शास्त्री बहुत ही महान और देशभक्त नेता थे। सन् 1964 में प्रधानमंत्री की शपथ के साथ ही, अपनी छोटे से कद की पहचान एक ऐसे महान नेता के रूप में की जिसे लोग ‘भारत के लाल’ के नाम से भी पुकारते थे। इससे पहले शास्त्री जी ने पुलिस मंत्री, परिवहन मंत्री और रेल मंत्री बनकर देश की सेवा की थी। इन्होने गृहमंत्री पद की शोभा को भी गौरवांगीत किया।
इनके दृढ़ निश्चय, धैर्य, ईमानदारी, कर्मठता और अपने कुशल नेतृत्व गुणों के कारण ही पूरे विश्व भर में उन्हें पहचान मिली। वे बड़े ही सादगी पसंद व्यक्तित्व वाले इंसान थे, अपनी सादगी के साथ किसी मुद्दे का समाधान वो बहुत ही चतुराई से करते थे। एक छोटे से परिवार में पैदा हुए लाल बहादुर शास्त्री जी गरीबों और उनके दुखों को बहुत ही अच्छे से समझते थे और उसका हल जनता के हित में होता था।
एक सक्रिय राजनेता और भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने पूरे राष्ट्र से गरीबी और गरीबों के उत्थान के लिए हमेशा ही प्रयत्नशील रहे थे। लाल बहादुर शस्त्री जी एक छोटे परिवार में पैदा हुए थे। गरीबी क्या होती है, इसको उन्होंने बहुत करीब से महसूस किया था। बचपन में ही अपने पिता की मृत्यु के बाद उनको और उनके परिवार को इस गरीबी से जूझना पड़ा था।
राष्ट्रवाद की भावना लाल बहादुर शास्त्री में बचपन में ही आ गई थी। वह कम उम्र से ही आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे थे और भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में उन्होंने अपना योगदान दिया। वह महात्मा गाँधी, एनीबेसेन्ट, और स्वामी विवेकानंद के विचारों से बहुत प्रभावित थे। शास्त्री जी वैसे तो बहुत ही सामान्य और शांत विचारों वाले व्यक्ति थे पर देश की जनता पर हो रहे अत्याचार पर उन्होंने महात्मा गाँधी के नारे “करो या मरो” को बदलकर “मरो नहीं मारो” का नारा दिया था। सन् 1965 में पाकिस्तान द्वारा किये गए अकस्मात हमले के दौरान उन्होंने किसानों और जवानों की निस्वार्थ सेवा के लिए “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया। 11 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद से उनकी मृत्यु खबर आई थी। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें “भारत रत्न” की उपाधि भी प्रदान की गयी।
लाल बहादुर शास्त्री का प्रारंभिक जीवन
हर महान नेता हम सभी के बीच से ही आता है और ऐसे लोग एक आम परिवार में ही जन्म लेते है। उनके गुण और कार्य-क्षमता ही उन्हें लोकप्रिय और महान बनाती हैं। जहां तक लाल बहादुर शास्त्री की बात है, उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर से सात मील दूर मुगलसराय नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम रामदुलारी देवी था। जब शास्त्री जी अट्ठारह माह के थे, तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। इस घटना के बाद इनकी माता इन्हें लेकर अपने पिता के घर मिर्जापुर चली गई और उनकी प्रारंभिक शिक्षा वही उनके मामा की देख-रेख में हुई। बाद में उच्च शिक्षा के लिए इन्हें वाराणसी के रामनगर इनके चाचा के यहां भेज दिया गया।
अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने हरिश्चंद्र हाई स्कूल में दसवीं कक्षा में प्रवेश लिया, और इसी दौरान वो स्वतंत्रता सेनानियों के महान नेताओं से वो बहुत प्रभावित हुए। बाद में इन्होंने वाराणसी के काशी विद्यापीठ से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उन्होंने ‘शास्त्री’ की उपाधि प्रदान की। विद्यापीठ में पढ़ाई के दौरान ही इन्होंने आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। 23 वर्ष की उम्र में 16 फरवरी 1928 को मिर्जापुर की ललिता देवी के साथ इनका विवाह हुआ। विवाह के उपरांत इनके चार बेटे और दो बेटियां हुई।
देशभक्ति भावना का उदय
लाल बहादुर शास्त्री में देशभक्ति की भावना का उदय स्कूली शिक्षा के दौरान 16 वर्ष की छोटी सी आयु में आ गई थी। उन्ही दिनों स्वतंत्रता सेनानियों के कई महान नेताओं से ये इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आंदोलनों में भी भाग लेना शुरू कर दिया था। स्वामी विवेकानंद और महात्मा गाँधी के विचारों और कार्यों से वो बहुत प्रभावित थे और उनके ही विचारों और छवि पर चलने की कोशिश करते रहते थे।
उनके अंदर स्वतंत्रता की भावना का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता आंदोलनों के संघर्षों में अपना योगदान और स्वयं सेवा के लिए इन्होंने अपना स्कूल तक छोड़ दिया था। उस दौरान कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा पर उन्होंने स्वतंत्रता के प्रति अपने समर्पण को कभी नहीं छोड़ा। वे लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित लोक समाज के सदस्य के रूप में और महात्मा गाँधी के नेतृत्व में मुजफ्फर के हरिजनों के उत्थान के लिए काम किया।
लाल बहादुर शास्त्री का राष्ट्र के प्रति योगदान
लाल बहादुर शास्त्री जी अपने समय के महानतम नेताओं में से एक थे। देश के लिए उनके योगदान और बलिदान का व्याख्यान करना बड़ा मुश्किल है। उन्होंने अपना सारा जीवन देश और उसकी सेवा के लिए बलिदान कर दिया और देश को हर कठिन परिस्थितियों से उभरने में मदद की। वो बहुत ही साधारण और गरीब परिवार से आते थे, इसलिए उन्हें लोगों के दुःख और दर्द का एहसास था। वो आम लोगों के नेता थे और उन्हीं की बेहतरी के लिए सारी उम्र काम किया। मैं यहां उनके दृढ़ व्यक्तित्व और किये गए महान कार्यों के बारे में बताऊंगा जिसके कारण देश में बड़ा बदलाव सम्भव हो पाया है।
- खेती को आत्मनिर्भर बनाया
जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने देश के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। उस समय देश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। देश में गरीबी और भुखमरी से लोग मर रहे थे। देश में पार्यप्त खद्यान पदार्थ नहीं थे जो सबका पेट भर सकें। इसके लिए भारत अन्य देशों पर आश्रित था क्योंकि उस समय भारत की उत्पादकता बहुत ही कम थी। सन् 1965 में उन्होंने देश में हरित क्रांति लाने को देश से आह्वाहन किया, और साथ ही साथ राष्ट्र को खद्यान उत्पादन के लिए आत्मनिर्भर बनने को कहा और लोगों में साहस पैदा किया। उन्होंने देश के किसानों के मेहनत पर अपना भरोसा और उनमें आत्मविश्वाश पैदा कर देश ने अन्न उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने के लिए कहा। उनके इस दृढ़ विश्वास, निति और भरोसे ने अच्छा काम किया और धीरे-धीरे देश को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की।
- देश की स्वतंत्रता में योगदान
उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उस समय के कई आंदोलनों में उन्होंने हिस्सा लिया और जेल भी गए। गाँधी जी को वो अपना गुरु मानते थे, और इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता के लिए गाँधी जी का अनुसरण किया। भारत की स्वतंत्रता एक महान नेतृत्व और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से ही संभव हो पाया। इस नेतृत्व ने लोगों में न केवल देशभक्ति की भावना को जगाया बल्कि उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी सिखाया।
- हरिजनों की बेहतरी के लिए काम किया
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में वो मुजफ्फरपुर के हरिजनों की भलाई के लिए संघर्ष किया और उनके लिए हमेशा सक्रीय रहें। उपनाम (सरनेम) को लेकर कोई जाती विवाद न हो इसलिए उन्होंने स्नातक में मिली शास्त्री की उपाधि को अपने नाम के आगे धारण किया था।
- 1965 युद्ध के दौरान नैतिक कुशलता
लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत थे, तब पाकिस्तान ने सन् 1965 में भारत पर अघोषित युद्ध कर दिया। तब उन्होंने अपनी सेनाओं को खुली छूट देकर उन्हें लड़ने को कहा था, और इस युद्ध का नतीजा भारत के पक्ष में रहा। इसी बीच उन्होंने देश को “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया था। यह हमारे देश के किसानों, सैनिकों के लिए सर्वोच्च सम्मान और देश की जनता को एक शानदार सन्देश था। इस नारे ने देश के सैनिकों को पाकिस्तान से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और परिणाम स्वरुप हमें जीत मिली। यह सब लाल बहादुर शास्त्री के बुद्धि क्षमता, कौशल, निति और कुशल नेतृत्व के कारण ही संभव हुआ था।
लाल बहादुर शास्त्री क्यों सभी के लिए अनुकरणीय है ?
शास्त्री जी बड़े ही ईमानदार, धैर्य, दृढ़ निश्चय और महान गुणों की प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। पिता की मृत्यु ने शास्त्री जी को परिस्थितियों से लड़ना सीखा दिया। उनके दृढ़ निश्चय ने उन्हें नेता से लेकर देश का प्रधानमंत्री बना दिया। शास्त्री जी बहुत ही साधारण विचारों वाले व्यक्ति थे, वो दिखाने में नहीं कर्म करने में विश्वास रखते थे। जमीं से जुड़े रहते हुए मृत्यु आने तक देश की सेवा की।
शास्त्री जी ने बहुत ही चुनौतीपूर्ण और गंभीर परिस्थिति में प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला था। इन सबके बाद भी उन्होंने बहुत ही साहस, समझदारी और बहादुरी से देश को उन गंभीर परिस्थितियों से बाहर निकाला। उन्होंने लोगों से सीधे तौर पर बात कर उनकी समस्याओं का समाधान किया, ये बात उन हरिजन को बेहतर बनाने में देखने को मिली। उन्होंने अपने विशेष नेतृत्व गुणों से देश को कठिन परिस्थितियों से बाहर निकाला। शास्त्री जी ने देश को बहादुरी और आत्मनिर्भरता सिखाई, जिसके कारण वे सभी के दिल में बसते है और उनसे प्रेरणा लेते है।
आने वाली पीढ़ियों के लिए शास्त्री जी का जीवन एक प्रेरणा के रूप में होगा। मुश्किल परिस्थितियों में चतुराई से लड़ना, निति, कौशल और बौद्धिक उपयोग कैसे किया जाये ये सब सिखाती है। मुश्किल घड़ी में बाधाओं को पार कर आगे बढ़ना और सफल होना ऐसे महान कार्यों और विचारों को लेकर आज तक वो हमारे अंदर जीवित है।
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