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शोध पत्र कैसे लिखें ?[HOW TO WRITE A RESEARCH PAPER ?]
एक शोध कर्त्ता जब अपना शोध कार्य पूर्ण करता है तब वह शोध के लाभ को जन जन तक या तत्सम्बन्धी परिक्षेत्र के लोगों को उससे परिचित कराना चाहता है और शोध से प्राप्त दिशा पर विद्वत जनों काप्रतिक्रियात्मक दृष्टि कोण जानना चाहता है ऐसी स्थिति में सहज सर्वोत्तम विकल्प दिखता है -शोध पत्र सम्पूर्ण शोध ग्रन्थ को सार रूप में सरल,बोध गम्य,शीघ्र अधिगमन योग्य बनाने के लिए शोध पत्र का प्रयोग किया जाता है ऐसे कई शोध पत्र,शोध पत्रिकाओं का हिस्सा बन जाते हैं एवम ज्ञान पिपासुओं की ज्ञान क्षुधा की तृप्तीकरण का कार्य करते हैं तथा जन जन तक इसका लाभ पहुँचना सुगम हो जाता है सेमीनार में इन्ही शोधपत्रों का वाचन होता है। शोधपत्र से आशय(Meaning Of Research Paper )- शोधपत्र,शोध रिपोर्ट या शोध कार्य का व्यावहारिक प्रस्तुति योग्य सार आलेख है जो परिणाम को अन्तिम रूप में समेट भविष्य की दिशा निर्धारण में सहयोगान्मुख है। प्रो 0 एस 0 पी 0 गुप्ता ने अपनी पुस्तक अनुसंधान संदर्शिका में बताया – “पत्र पत्रिकाओं (Journals) में प्रकाशित होने वाले अथवा संगोष्ठियों (Seminars) व सम्मेलनों(Conferences) में वाचन हेतु तैयार किये गए अनुसन्धान कार्य सम्बन्धी लेखों को प्रायः अनुसंधान पत्रक (Research Paper)का नाम दिया जाता है।” इस सम्बन्ध में एक अन्य शिक्षा शास्त्री डॉ 0 आर 0 ए 0 शर्मा ने अपनी पुस्तक “शिक्षा अनुसन्धान के मूल तत्व एवं शोध प्रक्रिया” में लिखा – “शोध प्रपत्र लिखना कठिन कार्य है क्योंकि यह कार्य आलोचनात्मक,सृजनात्मक तथा चिन्तन स्तर का है। शोध प्रपत्र लेखन में एक विशिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करना होता है जिसमें समुचित क्रम को अपनाया जाता है।” अतः उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि शोध प्रपत्र सम्पूर्ण शोध के परिणाम व सुझाव से युक्त वह प्रपत्र है जो स्व विचार के स्थान पर तथ्य निर्धारण हेतु तत्पर शोध आधारित दृष्टिकोण से वास्ता रखता है। शोध प्रपत्र के प्रकार (Types Of Research Paper)- काल व शोध के प्रकार के आधार पर शोध पत्र के प्रकारों का निर्धारण विद्वतजनों द्वारा किया गया है कुछ विशेष प्रकारों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं – विवाद प्रिय या तार्किक शोध पत्र (Argumentative Research Paper) कारण प्रभाव शोध पत्र (Cause and Effect Research Paper) विश्लेणात्मक शोध पत्र (Analytical Research Paper) परिभाषीकरण शोध पत्र (Definition Research Paper) तुलनात्मक शोध पत्र (Contrast Research Paper) व्याख्यात्मक शोध पत्र (Interpretive Research Paper) शोध प्रपत्र का प्रारूप (Research Paper Format)- शोध पत्र लिखने का कोई पूर्व निर्धारित प्रारूप सभी प्रकार के शोध हेतु निर्धारित नहीं है शोध कर्त्ता का सम्यक दृष्टि कोण ही शोध प्रपत्र का आधार बनता है फिर भी अपूर्णता से बचने हेतु सभी प्रमुख बिंदुओं को सूची बद्ध कर लेना चाहिए।दिशा,प्रवाह, अनुभव,अवलोकन सभी से शोध पत्र को प्रभावी बनाने में मदद मिलती है सामान्यतः शोध प्रपत्र प्रारूप में अधोलिखित बिन्दुओं को आधार बनाया सकता है। – (अ)- भूमिका (ब)- विषय वस्तु (स)- मुख्य अंश (द)- परिणाम व सुझाव संक्षेप में भूमिका लिखने के बाद विषय वस्तु से परिचय कराना चाहिए यहीं शोध शीर्षक के बारे में लिखकर मुख्य अंश के रूप में शोध प्रक्रिया,उपकरण व प्रदत्त संग्रहण,विश्लेषणआदि के बारे में संक्षेप में लिखते हुए प्राप्त परिणामों को सम्यक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए व इसी आधार पर सुझाव देने चाहिए अपने दृष्टिकोण को थोपने से बचना चाहिए। अच्छे शोध प्रपत्र के गुण (Qualities Of a Good Research Paper ) या अच्छे शोध प्रपत्र की विशेषताएं (Characteristics Of a Good Research Paper ) या अच्छे शोध प्रपत्र के लाभ (Advantage Of a Good Research Paper )- शोध प्रपत्र लिखना और सम्यक सन्तुलित शोध प्रपत्र लिखने में अन्तर है अतः प्रभावी शोध पत्र लिखने हेतु आपकी जागरूकता के साथ निम्न गुण ,विशेषताओं का होना आवश्यक है तभी समुचित लाभ प्राप्त होगा। (1 )- नवीन ज्ञान से संयुक्तीकरण। (2 )-शोध कार्यों सम्बन्धित दृष्टिकोण का सम्यक विकास। (3 )-पुनः आवृत्ति से बचाव। (4 )-परिश्रम को उचित दिशा। (5 )-विभिन्न परिक्षेत्र के शोधों से परिचय। (6 )-समीक्षा में सहायक। (7 )-विशेषज्ञों के सुझाव जानने का अवसर। (8 )-शक्ति व धन की मितव्ययता। (9 )-अनुभव में वृद्धि। (10 )-प्रसिद्धि में सहायक। सम्पूर्ण शोध पत्र लेखन के उपरान्त यदि वैदिक काल की मर्यादा के अनुसार सन्दर्भ ग्रन्थ सूची भी दे दी जाए तो कृतज्ञता ज्ञापन के साथ दूसरे शोध कर्त्ताओं की मदद हो सकेगी।
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शोधप्रारूप(synopsis) कैसे बनाएँ ? how to create a research design ?
जब हम अपने रिसर्च कार्य का प्रारम्भ करते है तो सबसे पहले शोध विषय(research topic) का चयन करते है । शोध विषय का निश्चय करने के तुरन्त बाद यह प्रश्न आता है कि इस शोधकार्य का प्रयोजन क्या है ? तथा कैसे इस शोध कार्य को पूर्ण करना है? यही तथ्य एक प्रक्रिया के द्वारा लिखित रूप में अपने गाइड और कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिसे हम शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) कहते हैं।
शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) सही ढंग से न प्रस्तुत करने के कारण वर्षों तक यहाँ-वहाँ भटकना पड़ता है तथा शोधकार्य पिछड़ता चला जाता है।दोस्तों यदि आपने शोधप्रारूप का निर्माण सही ढंग से कर लिया याकि एक बेहतर तरीके से चरणबद्ध शोधप्रारूप सिनॉप्सिस(synopsis) निर्मित कर ली तो यह कमेटी से शीघ्र ही पास हो जाता है । इसलिए कभी भी शोधप्रारूप का निर्माण चरणबद्ध तरीके से करें । शोधप्रारूप निर्माण के कुछ चरण निर्धारित किये गये हैं जिससे शोधप्रारूप बनकर तैयार होता है ।
शोधप्रारूप के 10 चरण(ten stages of research design)
1. परिचय पृष्ठ(introduction page), 2. प्रस्तावना(preface).
3. औचित्य(justification)
4. प्रयोजन(purpuse of research)
5. प्राक्कल्पना(hypothesis)
6. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(historical background).
7. शोध सर्वेक्षण(research survey)
8. शोध प्रकृति(nature of research)
9. अध्याय विभाजन(chapter division)
10. सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची(reference bibliography)
शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) के यही दस चरण हैं जिससे शोधप्रारूप का निर्माण होता है । अब हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।
यह सिनॉप्सिस(synopsis) का पहला पेज(front page) होता है जिसमें निम्नलिखित सूचनाएँ देते हैं-
- युनिवर्सिटी का लोगो(logo) तथा युनिवर्सिटी का नाम(name of university)
- शोध-विषय(research topic)
- सत्र(year)
- शोधनिर्देशक/निर्देशिका (name of superviser or guide)
- अपना नाम(your name)
प्रस्तावना वह भाग होता है जिसमें अपने शोध शीर्षक के विषय में सामान्य जानकारी देनी पड़ती है । एक तरह से यह आपके शीर्षक का सामान्य परिचय होता है । प्रस्तावना बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए । एक-एक शब्द को अच्छी तरह से जाँच-परखकर रखना चाहिए । प्रस्तावना में 300 से 500 शब्द होने चाहिए । आवश्यकतानुसार इसे घटाया बढ़ाया जा सकता है । परन्तु ध्यान रहे प्रस्तावना में व्यर्थ बातें नहीं भरनी चाहिए । जो आवश्यक बातें हो वही इस भाग में लिखें ।
3. औचित्य(justification)
आप जिस शीर्षक पर कार्य करने जा रहे हैं उस शीर्षक का औचित्य क्या है ? इसके बारे में यहाँ लिखना होता है। औचित्य का आशय यह है कि जिस विषय का आपने चयन किया है उस पर शोधकार्य करने की आवश्यकता क्या है । आपके इस शोधकार्य के करने से कौन-कौन सी नई बातें निकलकर आएंगी जिसके बारे में जानना जरूरी है। कभी-कभी हमें लगता है कि औचित्य और प्रयोजन एक ही बात है पर ऐसा नहीं है, इसमें अन्तर है । औचित्य भाग में केवल आपके शोध कार्य की आवश्यकता से सम्बन्धित बातों का जिक्र होता है जबकि प्रयोजन भाग में शोधकार्य के फल या परिणाम की जानकारी दी जाती है। अतः इन दोनों का अन्तर समझकर पृथक-पृथक जानकारी लिखनी चाहिए । इस भाग में यह भी बताना होता है कि इस विषय पर कितना कार्य हुआ है और क्या बाकी है । जो भाग शेष है उसकी भी पूर्ण जानकारी इसमें लिखनी चाहिए । क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय पर आप कार्य करने जा रहे हैं उस पर कार्य हुआ होता है परन्तु आपको लगता है कि नहीं यह कार्य अभी पूर्ण नहीं है , इसमें इतना भाग बचा है जिस पर शोधकार्य होना चाहिए। इसी बात की जानकारी इस भाग में देनी पड़ती है ।
4. प्रयोजन(Purpose of research)
आपके शोधकार्य का कोई न कोई प्रयोजन होना चाहिए । जैसा कि कहा गया है -
प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोपि न प्रवर्तते॥
अतः आपके शोधशीर्षक में एक अच्छा परिणाम, फल या प्रयोजन छुपा होना चाहिए । बिना प्रयोजन के शोध शीर्षक का चयन नहीं करना चाहिए । इस भाग में यह लिखना होता है कि आपने जो शोध शीर्षक चुना है उसका प्रयोजन क्या है ? इस शोधकार्य का परिणाम क्या होगा ? इसका जिक्र इस भाग में करना चाहिए । ध्यान रहे आपके शोध शीर्षक के विस्तार के आधार पर ही प्रयोजन का निश्चय करना चाहिए । ऐसा न हो कि जो प्रयोजन आप दिखा रहे हों वहाँ तक आपके शोध शीर्षक की पहुँच ही न हो । जैसे आपने किसी एक साहित्यिक पुस्तक पर शोधकार्य आरम्भ किया तथा प्रयोजन में लिखा कि इस शोधकार्य से सम्पूर्ण साहित्य जगत् का कल्याण होगा । यह गलत है । साहित्य जगत् बहु-विस्तृत शब्द है । एक पुस्तक पर किया गया कार्य समग्र साहित्य का कल्याण नहीं कर सकता अतः आपके द्वारा दिखाया गया यह प्रयोजन निरर्थक है । इस विषय का सही प्रयोजन यह है कि प्रस्तुत पुस्तक पर शोध कार्य करने से इस पुस्तक से सम्बन्धित तथ्य अध्येताओं के सम्मुख आयेंगे तथा इस पुस्तक के महत्त्व का आकलन हो सकेगा । अब आप समझ गये होंगे कि इस भाग में हमें क्या दर्शाना है । शोध शीर्षक के अनुरूप शोधकार्य का फल भी होना चाहिए ।
शोध प्रारूप का यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है । प्राक्कल्पना का अर्थ होता है पूर्व में कल्पना करना । अपने शोध शीर्षक के विषय में हम यह बताते हैं कि यह शोधकार्य किस प्रकार से अपने मूलभूत विषय का उपस्थापन करेगा अथवा इस विषय पर हमारे शोधकार्य से किस प्रकार के प्रतिफल के आने की सम्भावना है । इस बात का वर्णन भी इस शोधप्रारूप में करना पड़ता है ।
इस भाग में यह लिखना होता है कि आपके शोध-शीर्षक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है ? इस शीर्षक से सम्बन्धित तथ्यों का इतिहास क्या रहा है ? आपके शीर्षक को प्रभावित करने वाले कैसे-कैसे ग्रन्थ या कैसी-कैसी साहित्यिक सामग्री पूर्वकाल से ही उपलब्ध है अथवा प्राचीनकाल में आपके शोधविषय का प्रारूप क्या था ? इस भाग में शोध शीर्षक का ऐतिहासिक विवरण देना चाहिए ।
7. शोध-सर्वेक्षण(research survey)
शोधप्रारूप का यह भाग अतीव महत्त्वपूर्ण होता है । आपने कोई भी शोध शीर्षक चुन तो लिया, शोध प्रारूप भी बना लिया , सब कुछ निश्चित हो गया कि इसी शोध विषय पर हमें कार्य करना है परन्तु बाद में कमेटी में जाकर खारिज हो गया तथा पत्र में लिखकर आ गया कि जिस विषय पर आप शोधकार्य करने जा रहे हैं उस विषय पर तो कार्य हो चुका है । तब आपका मुंह देखने लायक होता है । तो यह घटना आपके साथ घटे इससे पूर्व ही यह निरीक्षण कर लें कि जिस विषय का आपने चुनाव किया है वह अकर्तृक है अर्थात् उस पर किसी ने शोध कार्य नहीं किया है । अपने शोध प्रारूप के इस भाग में आप यही बताएंगे कि जिस विषय पर मैं शोध कार्य करने जा रहा हूँ उस विषय पर मेरे संज्ञान में कोई शोधकार्य नहीं हुआ है । इसका सर्वेक्षण हमने कर लिया है तथा यह शोध शीर्षक शोधकार्य हेतु अर्ह है ।
8. शोध-प्रकृति(nature of research)
इस भाग में आप यह बताते हैं कि आपने अपने शोधकार्य में किस विधि या किस शोध पद्धति का इस्तेमाल किया है । आपके शोध की प्रकृति क्या है ? इस विषय में आप निश्चय करते हैं कि हमने शोधकार्य की परिपूर्णता एवं स्पष्टता हेतु किन-किन विधियों का समावेश किया है । यह प्रकृति अनेक प्रकार की हो सकती है । शोधकार्य में कहीं तुलनात्मक, कहीं विश्लेषणात्मक या कहीं विमर्शात्मक या कहीं-कहीं अन्यान्य शोध-प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है । इन्हीं विषयों की सम्भावना प्रस्तुत भाग में करनी चाहिए ।
शोध-प्रविधियों की जानकारी के लिए देखें- शोध-प्रविधियाँ ।
9. अध्याय-विभाजन(chapter division)
इस भाग में आप अपने शोधकार्य का प्रबन्ध भाग दर्शाने हेतु अध्याय विभाजन करते हैं । आपके शोध- प्रबन्ध के अध्यायों का प्रारूप कैसा रहेगा उन बातों का विवरण आप इस भाग में लिखेंगे । आपके शोध प्रबन्ध में 5,6,7,8,9, या 10 कितने अध्याय होंगे इसका स्पष्ट उल्लेख यहां होना चाहिए ।
अध्याय विभाजन में ध्यातव्य बातें-
- अध्यायों की संख्या आपके शोध प्रबन्ध के अनुरूप होनी चाहिए ।
- फालतू अध्याय न जोड़ें जिसका आपके शोध प्रबन्ध में कोई महत्त्व न हो ।
- अध्यायों में विशिष्ट तथ्यों से सम्बन्धित सब-टाइटल(sub-title) का प्रयोग करें ।जैसे-
अध्याय.1 के अन्तर्गत 1.1,1.2,1.3,...आदि या(क),(ख),(ग)... इत्यादि ।
- अध्याय विभाजन में सर्वप्रथम भूमिका फिर अध्यायों का क्रम पुनः उपसंहार अन्त में परिशिष्ट की योजना करनी चाहिए ।
10. सन्दर्भ ग्रन्थ सूची(reference bibliography)
शोध प्रारूप का यह अन्तिम भाग है । इस भाग में आपके शोध विषय में प्रयुक्त ग्रन्थों की जानकारी यहाँ देनी पड़ती है । सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में ग्रन्थ के लेखक, रचयिता या सम्पादक का नाम, ग्रन्थ का नाम या शीर्षक, प्रकाशक का नाम , प्रकाशन स्थल , संस्करण एवं वर्ष का क्रमशः उल्लेख करना चाहिए । पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट की भी यदि सहायता ली गई है तो इसका भी उल्लेख आप यहाँ कर सकते हैं ।
सबसे अन्त में नीचे बाएँ दिनाङ्क एवं स्थान का सङ्केत करना चाहिए तत्पश्चात् उसके नीचे बाँए ही साइड मार्गदर्शक का नाम एवं दायें अपना नाम एवं हस्ताक्षर अङ्कित करना चाहिए ।
हमें आशा है आपको यह लेख पसन्द आयेगा । आपको यह लेख कैसा लगा इसके बारे में कमेन्ट बॉक्स में लिखकर हमें प्रेषित करें । यदि सम्बन्धित विषय में किसी प्रकार की आशंका है तो भी कॉमेन्ट करके अवश्य सूचित करें ।
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SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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thanks for a lovly feedback
महादय: शोधप्रारूपस्य उत्तमम् रित्याम् विवरणं दत्तवान्। शोधर्थि कृत्ते उपयोगि भवेत्।
धन्यवाद, यदि आप सभी के काम आ सकूँ तो स्वयं को सफल मानूँगा। यदि आप इससे लाभान्वित हुए हों तो और मित्रों को भी प्रेरित करें ।
Thank you sir ek synopsis bhej dijiye koi ho apke pass toh
Koi AK synopsis bhejen sir
Thanks Sir 🙏
बहुत अच्छा विवरण। इस सम्बन्ध में आपसे सम्पर्क किया जा सकता है?
जी हाँ हमसे सम्पर्क करने के लिए हमारे ईमेल आईडी [email protected] या फोन नंबर 7376572355 पर सम्पर्क कर सकते हैं धन्यवाद 🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपने एक एक चरण को बेहतर ढंग से समझाया हैं 🙏🙏
धन्यवाद भाई 🙏🙏
Bahut hi sundar prasentation sir..
Babu ki sundar lekh dhanyavad
बहुत ही सुंदर जानकारी
Thank you for giving this a beautiful information for synopsis of PhD
अतिउत्तम प्रस्तुति एवं बहुपयोगी लेख
It's very useful and helpful for my synopsis 🙏
Thank you🙏🙏
Sir readymade शोधप्रारूप Ka pdf mil Sakta h 5 September last date
Thanks for sharing
very informative post for research. thanks for shering
Bharat mein madhyamik Shiksha ki samasya per shodh
Bahut suder
कुल पेज दृश्य
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Popular posts, नीतिशतक प्रश्नोत्तरी (important questions from nitishatakam), जाको प्रभु दारुण दुख देही । ताकी मति पहले हर लेही ।। जाको विधि पूरन सुख देहीं । ताकी मति निर्मल कर देही ।।, नीति शतक श्लोक संख्या (२१-३०) हिन्दी अनुवाद सहित.
- अध्यात्म 201
- अनुसन्धान 19
- अन्तर्राष्ट्रीय दिवस 2
- अभिज्ञान-शाकुन्तलम् 5
- अष्टाध्यायी 1
- आओ भागवत सीखें 14
- आज का समाचार 11
- आधुनिक विज्ञान 19
- आधुनिक समाज 146
- आयुर्वेद 44
- आरती 8
- उत्तररामचरितम् 35
- उपनिषद् 5
- उपन्यासकार 1
- ऋग्वेद 16
- ऐतिहासिक कहानियां 4
- ऐतिहासिक घटनाएं 13
- कथा 6
- कबीर दास के दोहे 1
- करवा चौथ 1
- कर्मकाण्ड 117
- कादंबरी श्लोक वाचन 1
- कादम्बरी 2
- काव्य प्रकाश 1
- काव्यशास्त्र 32
- किरातार्जुनीयम् 3
- कृष्ण लीला 2
- गजेन्द्र मोक्ष 1
- गीता रहस्य 1
- ग्रन्थ संग्रह 1
- चाणक्य नीति 1
- चार्वाक दर्शन 3
- चालीसा 6
- जन्मदिन 1
- जन्मदिन गीत 1
- जीमूतवाहन 1
- जैन दर्शन 3
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- जोक्स संग्रह 5
- ज्योतिष 48
- तन्त्र साधना 2
- दर्शन 35
- देवी देवताओं के सहस्रनाम 1
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- धार्मिक स्थल 48
- नवग्रह शान्ति 3
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कैसे प्रस्ताव (proposal) लिखें
यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा Dave Labowitz . डेव लेबोविट्ज़ एक बिजनेस कोच है जो पूर्व-उद्यमियों, एकल उद्यमियों/उद्यमियों की मदद करते हैं और टीम के नेताओं को अपने व्यवसायों और टीमों को शुरू करने, स्केल करने और नेतृत्व करने में मदद करते हैं। अपने कोचिंग करियर की शुरुआत करने से पहले, डेव एक स्टार्टअप एक्जीक्यूटिव थे, जिन्होंने एक दशक से अधिक समय तक उच्च-विकास वाली कंपनियों का निर्माण किया। डेव के “पाथ लेस ट्रेवल्ड” जीवन में हाई स्कूल से ड्रॉप आउट करने, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट में एक बुक का सह-लेखन, और पेपरडाइन के ग्राज़ियाडियो बिजनेस स्कूल में एमबीए प्राप्त करने जैसे रोमांच शामिल हैं। यहाँ पर 10 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल ५८,२४६ बार देखा गया है।
एक अच्छा प्रस्ताव या प्रपोजल (proposal) लिखना कई लिहाज से जरूरी होता है, व्यवसाय, स्कूल और बिजनस मैनेजमेंट से लेकर जियॉलॉजी (geology) सभी के लिए यह काफी महत्वपूर्ण योग्यता मानी जाती है। उपयुक्त लोगों को सूचना देकर उनका समर्थन प्राप्त करना एक अच्छे प्रपोजल का लक्ष्य है। अगर आप अपने विचारों और सुझावों को स्पष्ट रूप से, संक्षिप्त में, और आकर्षक रूप से पेश करेंगे, तो संभवतः लोग इनका समर्थन करेंगे। एक प्रभावी और आकर्षक प्रपोजल लिखने की जानकारी कई कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए आवश्यक है। प्रपोजल अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे साइंस प्रपोजल और बुक प्रपोजल (book proposals), लेकिन बेसिक गाइडलाइन सभी प्रपोजल्स के लिए एक ही है।
अपने प्रपोजल की योजना बनाना
- आपका प्रपोजल कौन पढ़ेंगा? उनको आपके विषय के बारे में कितनी जानकारी हो सकती है? अपने विषय के बारे में आप क्या परिभाषा या अधिक जानकारी देना आवश्यक मानते हैं?
- अपने प्रपोजल से अपने ऑडीअन्स को आप क्या देना चाहेंगे? अपने ऑडीअन्स को आप क्या जानकारी देना चाहेंगे जिससे वह वही निर्णय लेंगे जो आप चाहते हैं?
- अपने शब्द स्पष्ट लिखें ताकि आप अपने ऑडीअन्स को उम्मीदों और कामनाओं से परिचय करवा सकें। वह क्या सुनना चाहेंगे? उन्हें विषय के बारे में परिचय देने का सबसे उचित तरीका क्या है? आप अपने विषय के बारे में ऑडीअन्स को कैसे समझा पायेंगे?
- आपका विषय किन परिस्थितियों में लागू हो सकता है?
- इस विषय को चुनने के पीछे क्या कारण हैं?
- क्या आप निश्चिंत हैं कि यही सही कारण है, बाकी नहीं? आप इसकी कैसे पुष्टि करेंगे?
- क्या इससे पहले किसी और व्यक्ति ने भी इस विषय के बारे में जानकारी हासिल करने कि कोशिश की है?
- अगर जवाब हाँ है: क्या वह सफल हुए हैं? क्यों?
- अगर जवाब नहीं है: क्यों सफल नहीं हुए हैं?
- अपने प्रपोजल में एक मसले की परिभाषा “और” उसका सुझाव देना आवश्यक है, जिससे रसहीन, संशयी ऑडीअन्स आपके प्रपोजल का समर्थन कर सकें। [५] X रिसर्च सोर्स अपने ऑडीअन्स के मन को जीतना इतना आसान नहीं होगा। क्या आपका सुझाव तार्किक और सहज है? अपने सुझाव को अमल करने का घटनाक्रम क्या है?
- अपने सुझाव को उद्देश्य की तरह लिहाज करने की कोशिश करें। आपका प्राथमिक उद्देश्य वह लक्ष्य है जिसे आपको अपने प्रॉजेक्ट में सिद्ध करना अनिवार्य है। माध्यमिक उद्देश्य वह लक्ष्य हैं जिसे आप सिद्ध करने की उम्मीद करते हैं।
- अपने सुझाव को “नतीजा” (outcomes) और “प्रदेय” (deliverables) के रूप में समझना एक और लाभदायक तरीका है। अपने उद्देश्य के नतीजे परिमाणित अंत हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपका प्रपोजल किसी बिजनस प्रॉजेक्ट के लिए है और आपका उद्देश्य “मुनाफा बढ़ाना” है, तो आपका नतीजा “रु. 1,00,000 का मुनाफा कमाना” हो सकता है। प्रदेय ऐसे उत्पाद या सेवा हैं जिसे आप अपने प्रॉजेक्ट के साथ “प्रदान” करते हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञान प्रॉजेक्ट के प्रपोजल में एक नई दवाई या टीका (vaccine) को “प्रदान” करने का विवरण हो सकता है। ऑडीअन्स प्रपोजल में नतीजे और प्रदेय की खोज करते हैं, क्योंकि किसी प्रॉजेक्ट का “मूल्य” तय करने के लिए यह सबसे आसान तरीकों में से एक माना जाता है। [६] X रिसर्च सोर्स
- शब्दावली (विशिष्ट तकनीकी बोली) अपनाने के बारे में ध्यान रखें। प्रभावशाली रचना शब्दावली (jargon) मुक्त होते हैं जब तक आप किसी विषय को शब्दावली के बिना वर्णन नहीं कर सकते। “श्रमिक संख्या की असंतुलन में सुधार” और “कर्मचारियों को जाने देना” के बीच में अंतर का विचार करें। द्वितीय तथ्य न सिर्फ स्पष्ट और प्रासंगिक है, यह कम शब्दों का इस्तेमाल करता है, ताकि अपने विचारों के बारे में आप ज़्यादा विवरण दे सकते हैं। [७] X रिसर्च सोर्स
- आप लोगों को कैसे यक़ीन दिला सकते हैं? प्रपोजल को विश्वसनीय बनाने के लिए भावुक गुहार का प्रयोग करें, पर इसके लिए अपने दलील को तथ्य के आधार पर निर्भर होना चाहिए। उदाहरण के लिए, बाघ संरक्षण के प्रपोजल में आप चर्चा कर सकते हैं कि कितना दुखद होगा जब आने वाली पीढ़ी के बच्चे कभी बाघ नहीं देख पाएंगे, पर यह “रुकना” नहीं चाहिए। इस दलील को विश्वसनीय बनाने के लिए तथ्य और सुझाव के आधार पर निर्भर होना चाहिए।
- अपने सारांश में आपका मसला, आपका सुझाव, कैसे इसका समाधान निकालेंगे, आपका सुझाव क्यों उचित है, और एक समाप्ति शामिल होनी चाहिए। अगर आप एक कार्यकारी (executive) प्रपोजल तैयार कर रहे हैं, तो आपको बज़ट विश्लेषण और व्यवस्थापन जानकारी को प्रपोजल में शामिल करना होगा।
अपने प्रपोजल को लिखना
- अगर आप किसी अटल सत्य से अपने विषय पर रोशनी डाल सकते हैं तो तुरंत इसे संबोधित करें, इससे शुरू करना आपके लिए सबसे कुशल विचार साबित होगा। जो भी है, निश्चित करें कि आप एक सत्य के साथ शुरू कर रहे हैं और यह आपका अभिप्राय नहीं है।
- अपने मसले का समाधान क्यों निकालने की ज़रूरत है और इसे क्यों अभी सुलझाने की ज़रूरत है, इस विषय पर जोर दें। अगर ऐसे ही छोड़ दिया तो आपके ऑडीअन्स पर क्या असर होगा? सुनिश्चित करें कि आप सारे प्रश्नों का उत्तर शोध और हकीकत के साथ पेश करें। विश्वसनीय स्तोत्र को उदारता से प्रयोग करें।
- अपने प्रपोजल को विशेषक से घेरा या उलझन करने या इधर-उधर की बातें करने की कोशिश न करें। इस अनुभाग के ज़रिये अपने ऑडीअन्स को विश्वास दिलाना चाहिए कि एक मसला है, और वह महत्वपूर्ण है। “मुझे भरोसा है कि मेरे प्रपोजल से ज़िले की गरीबी पर काफी असर पड़ेगा” लिखने से आपके ऑडीअन्स को किसी बात पर विश्वास नहीं होगा। सीधा और संक्षिप्त रहें। “इस प्रस्तावित योजना से ज़िले में गरीबी को हटाना उल्लेखनीय है,” ज़्यादा विश्वसनीय है।
- अपने विचारों के असर के बारे में चर्चा करें। जिन विचारों की उपयुक्तता सीमित हैं वह ऑडीअन्स में उत्सुकता नहीं भर सकते, जितनी उन विचारों की उपयुक्तता, उतना ही व्यापक उसका असर हो सकता है। उदाहरण के लिए: “टूना मछली के व्यवहार के बारे में बेहतर ज्ञान प्राप्त करने से हम एक ज़्यादा विस्तृत अनुशासन करने की योजना बना सकते हैं और भविष्य की पीढ़ी को टूना मछली कैन करना पक्का कर सकते हैं।”
- अपने प्रपोजल में आप क्या करना चाहेंगे उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आप “क्यों” वह करना चाहेंगे। मान लेते हैं कि आपके ऑडीअन्स संशयी हैं और वह आपके विचारों से प्रत्यक्ष मूल्य पर सहमत नहीं हैं। अगर आप 2000 टूना मछली पकड़ कर-शोध करके-उन्हें छोड़ने का प्रपोजल पेश करते हैं, तो क्यों? क्या इससे बेहतर कोई विकल्प है? अगर यह महंगा विकल्प है, तो इससे सस्ता विकल्प को क्यों नहीं चुन सकते? पूर्वानुमान करके और ऐसे प्रश्नों का उत्तर तैयार करने से आपके ऑडीअन्स को पता चलेगा कि आपने अपने विचारों के हर पहलू पर गौर किया है।
- आपके प्रपोजल को पढ़ने के बाद आपके ऑडीअन्स को लगना चाहिए कि आप इस मसले का कुशलतापूर्वक हल निकाल सकते हैं। जो भी आप अपने प्रपोजल में पेश करते हैं, उसमें पूरी तरह से सिर्फ मसले या उसके समाधान के बारे में होना चाहिए।
- बड़े पैमाने पर प्रपोजल का शोध करें। जितने ज़्यादा उदाहरण और तथ्य आप अपने ऑडीअन्स को पेश करेंगे, उतना बेहतर होगा – यह ज़्यादा विश्वसनीय होगा। अपने अभिप्राय का त्याग करें और दूसरों के ठोस शोध पर भरोसा करें।
- अगर आपके प्रपोजल में पेश किए गए सुझाव सफल साबित नहीं हो सकता है, तो वह सुझाव उचित नहीं है। अगर आपका सुझाव सहज नहीं है, तो उसे बाहर निकाल दें। अपने सुझाव के परिणाम के बारे में भी ध्यान रखें। अगर हो सके तो अपने सुझाव का पूर्व-निरीक्षण करें और उसे बदलने की कोशिश करें।
- आप अपना प्रॉजेक्ट कब शुरू करने की कल्पना कर रहे हैं? आपके प्रॉजेक्ट की प्रगति का रफ्तार क्या होगा? हर कदम पिछले कदम पर कैसे आधारित होगा? क्या कुछ चीजों को एक-साथ कर सकते हैं? जितना हो सके कुशल बने ताकि अपने ऑडीअन्स को विश्वास दिला सकें कि आप आवश्यक कार्य करके आये हैं और उनका निवेश व्यर्थ नहीं जाएगा।
- सुनिश्चित कर लें कि आपका प्रपोजल आर्थिक रूप से सुदृढ़ है। अगर आप अपने प्रपोजल को किसी कंपनी या व्यक्ति को पेश कर रहे हैं, तो उनके बज़ट पर ध्यान रखें। अगर वह आपके प्रपोजल का खतरा नहीं उठा सकते, तो आपका प्रपोजल समुचित नहीं है। अगर प्रपोजल उनके बज़ट से तालमेल रखता है, तो उनके समय और पैसे का मूल्य शामिल करना न भूलें।
- अगर आपके प्रपोजल में कुछ अतिरिक्त तथ्य हैं जो सही मायने में अनुरूप नहीं हैं, तो आप एक अतिरिक्त अनुभाग (appendix) को जोड़ें। परंतु आप यह भी जानते हैं कि जितना मोटा आपका प्रपोजल होगा, लोग इसे देखकर डर जाएंगे। अगर आपको संदेह है, तो इस भाग को शामिल न करें।
- अगर आपके प्रपोजल में दो से ज़्यादा अनुभाग है, तो उन्हें क, ख, आदि से नामांकन करें। यह आप तब इस्तेमाल कर सकते हैं जब आपके पास आंकड़ा पत्रक (data sheet), पुनः प्रकाशित उल्लेख (reprint of articles), या समर्थन पत्र (letters of endorsement) जैसे दस्तावेज़ हैं। [१३] X रिसर्च सोर्स
- एक (या दो) लोगों को अपने प्रपोजल पर नज़र डालने को कहें। वह प्रपोजल में समस्याओं को चिन्हांकित कर सकते हैं जिसे आपने नजरंदाज किया होगा। ऐसी समस्याएं होंगे जिन्हें आप पूरी तरह से संबोधित करना भूल गए होंगे या ऐसे प्रश्न जिन्हें आपने खुला छोड़ दिया है।
- शब्दावली (jargon) और पिष्टोक्ति (clichés) का प्रयोग न करें! इससे ऑडीअन्स को लगेगा कि आप आलसी है और उनके समझने में बाधा डाल सकते हैं। जहाँ छोटे शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं वहां लंबे शब्द का इस्तेमाल न करें। [१६] X रिसर्च सोर्स
- जहाँ तक हो सके कर्मवाच्य (passive voice) का प्रयोग करना टालें। कर्मवाच्य में “करना होगा” जैसे क्रियावाचक शब्द का प्रयोग होता है और आपके अर्थ अस्पष्ट हो जाएंगे। इन दो वाक्यों की तुलना करें: “खिड़की नीरस व्यक्ति (zombie) द्वारा तोड़ी गई है” और “नीरस व्यक्ति (zombie) ने खिड़की तोड़ी।” पहले वाक्य में आपको पता नहीं है कि “किसने” खिड़की तोड़ी: नीरस व्यक्ति ने तोड़ी? या फिर नीरस व्यक्ति खिड़की के पास खड़ा था जो टूटी हुई थी? दूसरे वाक्य में, वास्तव में आपको पता है कि कौन तोड़ रहा है और यह महत्वपूर्ण क्यों है।
- आपकी ओर से कोई भी गलती आपको कम शिष्ट और विश्वसनीय दिखाई देगी, जिससे ऑडीअन्स आपके प्रपोजल को समर्थन देने के आसार कम हो जाते हैं।
- निश्चित करें कि प्रपोजल लिखने के गाइडलाइन के अनुसार आपने फॉर्मेट किया है।
- ऐसे शब्द का प्रयोग करें जो ऑडीअन्स आसानी से समझ सकें। छोटे वाक्य का प्रयोग करें जो स्पष्ट और प्रासंगिक है।
- किसी भी आर्थिक या अन्य साधन के बारे में चर्चा सावधानी से करनी चाहिए और होने वाले अपेक्षित खर्च की वास्तविक तस्वीर दिखाएं।
संबंधित लेखों
- ↑ http://orsp.umich.edu/proposal-writers-guide-overview
- ↑ https://owl.english.purdue.edu/media/pdf/20080628094326_727.pdf
- ↑ http://facstaff.gpc.edu/~ebrown/pracguid.htm
- ↑ http://www.nsf.gov/pubs/2004/nsf04016/nsf04016.pdf
- ↑ ५.० ५.१ http://www.dailywritingtips.com/how-to-write-a-proposal/
- ↑ http://www.plainlanguage.gov/howto/wordsuggestions/jargonfree.cfm
- ↑ १३.० १३.१ http://orsp.umich.edu/proposals/pwg/pwgcomplete.html
- ↑ http://www.forbes.com/sites/augustturak/2013/02/18/how-to-write-a-plan-or-proposal-that-rocks/
- ↑ http://c.ymcdn.com/sites/www.apmp.org/resource/resmgr/podcasts/clear_prop_writing.pdf
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