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समस्या समाधान विधि क्या है,अर्थ एवं परिभाषा,सोपान तथा सीमाएँ | Problem Solving method in Hindi

इसमें पोस्ट में समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method), समस्या समाधान का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning & Definition of Problem Solving), समस्या समाधान के सोपान (Steps of Problem Solving), समस्यात्मक स्थिति का स्वरूप (Nature of Problematic Situation), समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान  (Model of Problem Solving Teaching), समस्या समाधान शिक्षण हेतु आदर्श पाठ-योजना, समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ, समस्या समाधान शिक्षण की विशेषताएं,समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ, आदि को पढेगें।

Table of Contents

विभिन्न पद्धतियों पर आधारित पाठ-योजना(Lesson Planning Based on Various Methods)

शिक्षण तकनीकी में तीव्र गति से हए विकास के फलस्वरूप शिक्षण हेतु शिक्षा न विभिन्न नवीनतम पद्धतियों का आविष्कार किया ताकि छात्रों में नवीन चनौति सामना करने हेतु मौलिक चिन्तन का विकास किया जा सके। बहुत लम्बे समय तक हरबर्ट की पंचपदी का प्रचलन शिक्षण हेतु मुख्य रूप से किया जाता रहा, लेकिन आज हरबाट पंचपदी के साथ-साथ विशिष्ट शिक्षण के प्रयोजनार्थ विशिष्ट शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाने लगा है। शिक्षण की कुछ नवीनतम पद्धतियों का वर्णन पाठ-योजना सहित यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

मानव जीवन में समय-समय पर अनेकानेक समस्याएँ आती रहती हैं और इनके परिणामस्वरूप मानव में तनाव, द्वन्द्व, संघर्ष, विफलता, निराशा जैसी प्रवृत्तियाँ जन्म लेती हैं जिनके कारण वह अपने जीवन से विमुख होने का प्रयत्न करता है। ऐसी परिस्थितियों से बचाने के लिए अच्छा शिक्षक छात्रों को प्रारम्भ से ही समस्या समाधान विधि से शिक्षण देकर छात्रों में तर्क एवं निर्णय के द्वारा किसी भी समस्या को सुलझाने की क्षमता का विकास करता है।

समस्या समाधान एक जटिल व्यवहार है। इस व्यवहार में अनेक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियायें सम्मिलित रहती हैं। छात्र के समक्ष ऐसी समस्यात्मक परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं जिनमें वह स्वयं चिन्तन, तर्क तथा निरीक्षण के माध्यम से समस्या का हल ढूंढ़ सके। सुकरात ने भी आध्यात्मिक संवादों में इसका प्रयोग किया था। समस्या समाधान सार्थक ज्ञान को प्रदर्शित करता है, इसमें मौलिक चिन्तन निहित होता है। इसके लिए शिक्षण की व्यवस्था चिन्तन स्तर पर की जाती है।

                                

समस्या समाधान का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning & Definition of Problem Solving)

समस्या समाधान एक ऐसी शैक्षिक प्रणाली है जिसके द्वारा शिक्षक तथा छात्र किसी महत्त्वपूर्ण शैक्षिक कठिनाई के समाधान अथवा निवारण हेतु प्रयत्न करते हैं तथा छात्र स्वयं सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।

1. थॉमस एम. रिस्क-“समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक पूर्ण सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया नियोजित कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी अधिकृत विद्वान के विचारों की तर्करहित स्वीकृति निहित नहीं है, वरन् यह विचारशील चिन्तन की प्रक्रिया है।”

2 रॉबर्टगेने-“दो या दो से अधिक सीखे गये प्रत्यय या अधिनियमों को एक उच्च स्तरीय अधिनियम के रूप में विकसित किया जाता है, उसे समस्या समाधान अधिगम कहते हैं।”

समस्या समाधान के सोपान (Steps of Problem Solving)

बॉसिंग ने समस्या समाधान प्रविधि के निम्नलिखित सोपान बताये हैं :

(अ) कठिनाई या समस्या की अभिस्वीकृति,

(ब) कठिनाई की समस्या के रूप में व्याख्या,

(स) समस्या समाधान के लिए कार्य करना

(i) तथ्यों का संग्रह करना,

(ii) तथ्यों का संगठन करना,

(iii) तथ्यों का विश्लेषण करना।

(द) निष्कर्ष निकालना,

(य) निष्कर्षों को प्रयोग में लाना ।

समस्यात्मक स्थिति का स्वरूप (Nature of Problematic Situation)

बोर्न (1971) ने ‘उस स्थिति को समस्यात्मक स्थिति कहा है जिसमें व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुँचने की चेष्टा करता है, किन्तु प्रारम्भिक प्रयासों में लक्ष्य तक पहुँचने में असफल रहता है। इस स्थिति में उसे दो या दो से अधिक अनुक्रियायें करनी होती हैं जिनके लिए उसे प्रभावशाली उद्दीपक संकेत प्राप्त होते हैं।’

जॉन्सन (1972) ने समस्यात्मक स्थिति में प्राणी के व्यवहार का विश्लेषण करते हुए कहा:

1. प्राणी का व्यवहार लक्ष्योन्मुख होता है।

2. लक्ष्य की प्राप्ति पर अनुक्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं।

3. समस्या समाधान हेतु विविध अनुक्रियाएँ की जाती हैं।

4. व्यक्तियों की अनुक्रियाओं में विभिन्नता होती है।

5. पहली बार समस्या समाधान में अधिक समय लगता है।

6. इससे सिद्ध होता है कि जीव में मध्यस्थ अनुक्रियायें होती हैं।

इस समस्यात्मक परिस्थिति का कक्षा शिक्षण में प्रयोग करते समय समस्या का चयन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए, जैसे :

1. समस्या जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथा सार्थक हो,

2. यह छात्रों को स्वतः चिन्तन हेतु प्रेरित करे,

3. छात्रों की अवस्था तथा स्तर के अनुरूप हो,

4. समस्या किसी निश्चित विषयवस्तु तथा लक्ष्य से सम्बन्धित हो,

5. यह स्पष्ट तथा बोधगम्य हो।

समस्या समाधान शिक्षण के सोपान (Steps of Problem Solving Teaching)

जेम्स एम. ली (James M. Lee) ने समस्या समाधान शिक्षण के निम्नलिखित सोपान बताये हैं:

1. समस्या का चयन करना- समस्या का चयन करते समय उपर्युक्त वर्णित सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए।

2. यह समस्या क्यों है?- समस्या चयन क बाद समस्या की प्रकृति को छात्रों द्वारा सक्षमता से जाँचा जाता है।

3. समस्या को पूर्ण करना- समस्या का प्रकृति के अनुसार छात्र सूचनाओं, सिद्धान्तों कारणों आदि का संग्रह करते हैं, इसके बाद उनका संगठन एवं विश्लेषण करते हैं। शिक्षक समस्या समाधान हेतु पथ-प्रदर्शन नहीं करता, अपितु खोज एवं अध्ययन कार्यों तथा व्यक्तिगत एवं सामूहिक कठिनाइयों के समाधान में सहायता देता है।

4. समस्या का हल निकालना- छात्र समस्या से सम्बन्धित सामग्री का विश्लेषण करने के बाद उसका कोई उपयुक्त समाधान निकालते हैं।

5. समाधान का प्रयोग- छात्र समस्या का हल अथवा समाधान निकालने के बाद उनका प्रयोग जीवन में करते हैं।

समस्या समाधान के अनुदेशन के लिए पाँच सोपानों का अनुकरण किया जाता है जो ग्लेसर के बुनियादी शिक्षण प्रतिमान से सम्बन्धित हैं। इस प्रतिमान का विस्तृत वर्णन ‘शिक्षण के प्रतिमान’ नामक पाठ में विस्तार से किया जा चुका है।

समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान (Model of Problem Solving Teaching)

समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान शिक्षण के चिन्तन स्तर पर आधारित होता है। चिन्तन स्तर के शिक्षण के प्रवर्तक हण्ट है तथा इस स्तर के शिक्षण प्रतिमान को हण्ट शिक्षण प्रतिमान भी कहते हैं, इसमें मुख्य रूप से चार सोपानों का अनुसरण किया जाता है :

1. उद्देश्य,

2. संरचना :

(अ) डीवी की समस्यात्मक परिस्थिति,

(ब) कूट लेविन की समस्यात्मक परिस्थिति,

3. सामाजिक प्रणाली; एवं

4. मूल्यांकन प्रणाली।

समस्या समाधान शिक्षण हेतु आदर्श पाठ-योजना

वस्तुतः समस्या समाधान शिक्षण हेतु पाठयोजना बनाना तथा शिक्षण करना-दोनों ही जटिल कार्य हे तथापि इसके लिए शिक्षक को पाठयोजना बनाते समय निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना चाहिए :

1. पूर्व योजना-

शिक्षक को सर्वप्रथम पाठ को भली-भाँति समझकर उस पर चिन्तन करना, समस्या के विभिन्न पहलुओं को लिखना,छात्रों को समस्या के प्रति जिज्ञासु बनाना चाहिए, इस समय शिक्षक योजना के निर्माता के रूप में कार्य करता है । जैसे नागरिकशास्त्र शिक्षण करते समय संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में क्या अन्तर है ? संविधान निर्माताओं द्वारा इनके बीच अन्तर के लिए कौन-कौन से आधार निर्धारित किये ? यह मूल समस्या छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जाती है । इससे छात्रों में मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।

यदि समस्या के प्रस्तुतीकरण के साथ छात्र व्यक्तिगत रूप से समस्या से सम्बन्धित नवीन विचारणीय बिन्दुओं को प्रस्तुत करें तो उनकी जिज्ञासाओं को भी नोट करना चाहिए।

2. शिक्षण प्रदान करना-

कक्षा में समस्या का प्रस्तुतीकरण करने के बाद शिक्षक छात्रों के समक्ष मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्वों पर कुछ प्रकाश डालेगा जिससे छात्रों में विषय के प्रति रुचि उत्पन्न होगी और वे अपनी प्रतिक्रियाएँ अभिव्यक्त करेंगे। शिक्षक का यह प्रयास होगा, कि छात्रों द्वारा प्रस्तुत अनेक समस्याओं में से केवल वह विषय से सम्बन्धित समस्याओं की ओर ही छात्रों को केन्द्रित करे। अब शिक्षक विभिन्न दृष्टिकोणों से चिन्तन करने के लिए छात्रों को उत्साहित करेगा कि वे कौन-कौन से कारक थे जिनके कारण संविधान में दो अलग-अलग अध्याय इस विषय से सम्बन्धित रखे गये।

इसके लिए छात्रों को भारत के संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, भारत एवं विश्व का इतिहास, सामाजिक ज्ञान तथा नागरिकशास्त्र की पुस्तकें, संविधान निर्मात्री सभा द्वारा व्यक्त किये गये विचार आदि विषय पढ़ने के लिए निर्देश देगा। छात्र प्रोत्साहित होकर रुचि के अनुसार अध्ययन करेंगे।

इस प्रकार शिक्षक छात्रों को विषयवस्तु से सम्बन्धित तथा अन्य सहायक सामग्री से सम्बन्धित सहायता प्रदान करेगा। इसके बाद छात्रों द्वारा अभिव्यक्त किये गये विषय से सम्बन्धित बिन्दुओं को संकलित किया जायेगा। इस समय शिक्षक की भूमिका एक आदर्श प्रबन्धक के रूप में होगी। संकलित विचारों पर संयुक्त रूप से विचार-विमर्श द्वारा समस्या के समाधान हेतु अनुमान निर्धारित किया जाता है।

अन्तिम चरण में जब विचार-विमर्श द्वारा मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच अन्तर का आधार छात्रों को ज्ञात हो जाता है, तो शिक्षक छात्रों से प्रश्न करता है, कि इन अधिकारों तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों का संविधान में क्या स्थान है ? इन अधिकारों के साथ आपके क्या कर्त्तव्य हैं ? मानव जीवन के लिए यह कितने सार्थक सिद्ध हुए हैं ? इनमें कौन-कौन से दोष हैं ? इन दोषों के निवारणार्थ कौनसे उपाय हो सकते हैं ? आदि इन समस्याओं के चिन्तन से छात्र कुछ निष्कर्षों तक अवश्य पहुँचेंगे तथा भविष्य में आने वाली इन समस्याओं से सम्बन्धित आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक पहलुओं का निवारण करने में सक्षम होंगे। इस समय शिक्षक एक अच्छे मूल्यांकनकर्ता की भूमिका निभायेगा।

समस्या समाधान शिक्षण की विशेषताएं

1. यह छात्रों को समस्याओं के समाधान के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करता है।

2. इसमें छात्र क्रियाशील रहता है तथा स्वयं सीखने का प्रयत्न करता है।

3. यह मानसिक कुशलताओं, धारणाओं, वृत्तियों तथा आदर्शों के विकास में सहायक होता है।

4. यह छात्रों को आत्मनिर्णय लेने में कुशल बनाता है।

5. इससे छात्रों की स्मरण-शक्ति के स्थान पर बुद्धि प्रखर होती है।

6. इसके द्वारा छात्रों में मौलिक चिन्तन का विकास होता है।

7. यह छात्रों में उदारता, सहिष्णुता और सहयोग जैसे गुणों का विकास करती है।

समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ

1. सभी विषयों को समस्याओं के आधार पर संगठित करना लाभदायक नहीं होता।

2. इसमें समय अधिक लगता है था छात्रों की प्रगति बहुत धीमी गति से होती है।

3. इसके अधिक प्रयोग से शिक्षण में नीरसता आ जाती है।

4. इसका प्रयोग केवल उच्च स्तर पर ही किया जा सकता है।

5. छात्र को समस्या का अनुभव करवाना तथा उसे स्पष्ट करना सरल नहीं है।

6. इसमें सामहिक वाद-विवाद को ही शिक्षण की प्रभावशाली व्यहरचना पाता जाता है।

7. इस शिक्षण में स्मृति तथा बोध स्तर के शिक्षण की भाँति किसी निश्चित कार्यक्रम का अनुसरण नहीं किया जा सकता।

8. इसमें छात्र तथा शिक्षकों के मध्य सम्बन्ध निकट के होते हैं। छात्र शिक्षक की आलोचना भी कर सकता है। निष्कर्षतः समस्या समाधान शिक्षण हेतु छात्रों की आकाँक्षा का स्तर ऊँचा होना। चाहिए तथा उन्हें अपनी समस्या के प्रति संवेदनशील और उनके लिए चिन्तन का समुचित वातावरण होना चाहिए, तब ही यह शिक्षण सफल होगा।

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Problem solving method of teaching in hindi, समस्या समाधान विधि (problem solving method).

समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थकों में किलपैट्रिक और जान ड्यूवी का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने पाठशाला कार्य को इस तरह से व्यवस्थित करने का प्रयास किया जिससे छात्र वास्तविक समस्या का अनुभव करें और मानसिक स्तर पर उसका हल ढूंढने के लिए प्रेरित हों। हमारे जीवन में पग-पग पर समस्याओं का आना स्वाभाविक है और हम इनका तर्क युक्त समाधान भी ढूंढने का प्रयास करते हैं। यदि हम तर्क के साथ किसी समस्या के समाधान की दिशा में प्रयास करते हैं तो निश्चित ही हम किसी न किसी लक्ष्य पर पहुँचते हैं और समस्या का समाधान कर लेते हैं। तर्क पूर्ण ढंग से समस्या की रुकावटों को हल करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही समस्या समाधान विधि के अन्तर्गत आता है।

Problem Solving Method of Teaching in hindi

(i) लेविन ने समस्या समाधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "एक समस्यात्मक स्थिति, एक रचनाहीन या असंरचित जीवन स्थल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है।"

(ii) स्किनर के अनुसार, "समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उपस्थित करने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।”

(iii) जॉन ड्यूवी के मतानुसार, "समस्या हल करना तर्कपूर्ण चिन्तन के ताने बाने से बुना हुआ है। समस्या लक्ष्य का निर्धारण कर देती है और लक्ष्य ही चिन्तन प्रक्रिया को नियन्त्रित करता है।"

(iv) रिस्क के अनुसार, "समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया योजनाबद्ध कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी विद्वान के विचारों की तर्क रहित स्वीकृति नहीं है बल्कि यह विचारशील चिन्तन प्रक्रिया है।"

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जब कोई व्यक्ति ज्ञान तथ्यों के आधार पर उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों से भटक जाता है तो उसमें तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है और यह तनाव तभी कम होता है जब इसका अन्त उस समस्या के समाधान के रूप में सामने आता है। लेविन की परिभाषा में जीवन स्थल शब्द का प्रयोग किया गया है। लेविन का जीवन स्थल से अभिप्राय व्यक्ति के चहुं ओर के वातावरण से है। इसी क्षेत्र में जब कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो व्यक्ति के सम्मुख समस्या उत्पन्न होती है और समस्या की कठिनाइयां उसे समस्या समाधान करने के लिए प्रेरित करती है। इस समाधान की स्थिति तक प्रयास करते हुए पहुँचना ही समस्या समाधान कहलाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी समस्या समाधान विधि के माध्यम से छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का तर्कपूर्ण चिन्तन कर स्वयं ही इन समस्याओं का हल ढूंढने के लिए प्रेरित किया जाता है और उनकी शिक्षण प्रक्रिया आगे बढ़ती है।

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps in Problem Solving)

समस्या समाधान विधि के निम्न सोपान हैं-

1. चिन्ता:- समस्या समाधान विधि का प्रथम सोपान चिन्ता है। इस सोपान में किसी परिस्थिति को छात्रों के सम्मुख इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि वे इसके प्रति कठिनाई महसूस करे और चिन्तित हो तथा उन्हें यह भी अहसास हो कि वह इस कठिनाई का हल किसी पूर्व निश्चित विधि के माध्यम से नहीं कर पायेगे। ऐसी स्थिति में वे इस समस्या या परिस्थिति को कठिनाइयों को हल करने के लिए प्रयास करेंगे। तर्कपूर्ण चिन्तन के लिए बाध्य होंगे।

2. परिभाषा:- समस्या समाधान विधि के इस दूसरे सोपान में समस्या से सम्बन्धित कठिनाई को परिभाषित किया जाता है और उसकी स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। प्रत्येक समस्या से जुड़ी हुई कई छोटी-छोटी समस्यायें भी होती हैं। इन समस्याओं को भी छात्रों को विस्तारपूर्वक समझाया जाता है और फिर उनके निराकरण को विधि भी निर्धारित कर दी जाती है। यही समस्या समाधान विधि का दूसरा सोपान समाप्त होता है।

3. निराकरण प्रयास:- समस्या समाधान का तीसरा सोपान समस्या के निराकरण के लिये किये गये प्रयासों का सोपान है। इसमें समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन प्रयोग व विचार विमर्श किया जाता है। उनका वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया जाता है। पूर्व निश्चित सिद्धान्तों का भी पुनः निरीक्षण किया जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के उपकरणों और यन्त्रों आदि का भी सहारा लेना होता है। यदि समस्या का आकार बहुत बड़ा होता है तो उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

4. अनुमान या उपकल्पना:- तीसरे सोपान में समस्या के समाधान से सम्बन्धित जिन तथ्यों को एकत्र किया जाता है इस सोपान में उनका विश्लेषण किया जाता है। इस क्रिया में कक्षा के सभी छात्र अपना-अपना सहयोग देते हैं। समस्या समाधान के बारे में एक उपकल्पना तैयार को जाती है और इस उपकल्पना को एकत्रित सभी प्रश्नों में से अधिकांश प्रश्नों की पुष्टि करती है। उसे ही अन्तिम स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है और यह समझ लिया जाता है कि इसके माध्यम से ही समस्या का समाधान किया जाना सम्भव है। यही परिकल्पना कहलाती है। इसके पश्चात् इस उपकल्पना के माध्यम से समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

5. मूल्यांकन:- समस्या समाधान विधि के इस अन्तिम सोपान में निर्मित की गई उपकल्पना का पुनः प्रयोग करते हुए इसकी सत्यता को पुनः परखा जाता है। ऐसा करने के लिए इस उपकल्पना को अन्य सीखी हुई बातों के साथ सम्बन्धित किया जाता है और पूर्व अनुभवों के आधार पर इसकी सत्यता को आंका और जाँचा जाता है। इसके पश्चात् निर्णय की स्थिति आती है और समस्या का समाधान कर लिया जाता है।

ध्यान रहे कि इन पाँचों सोपानों में पहले चार सोपान आगमन विधि के है और पाँचवा और अन्तिम सौपान निगमन विधि का है। यह पाँचों पद एक दूसरे से पूरी तरह से गुथे हुए तथा सम्बन्धित होते हैं। इन्हें एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता।

समस्या समाधान विधि के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें (Things to Note in Using Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि कक्षा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सरल और स्वाभाविक विधि है। कक्षा में इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिये-

  • तार्किक चिन्तन के लिये एक प्रेरक का होना आवश्यक है। क्योंकि बिना किसी प्रेरणा के छात्र समाधान के लिये प्रयास नहीं करेगा।
  • स्वस्थ संकल्पना (Sound concepts) के आधार के रूप में बालक बाह्य संचार की वस्तुओं का ताजा ज्ञान अवश्य रखे। इनके अभाव में इनका प्रतिनिधित्व करने वाले उदाहरणों को सामने रखना चाहिये।
  • इनके साथ-साथ बालक के शब्द-ज्ञान (भाषा-ज्ञान) का भी उत्तरोत्तर क्रमिक विकास होना चाहिये। चिन्तन के लिये भाषा एक आवश्यक तत्त्व है।
  • तार्किक चिन्तन का बीज तत्त्व समझ या बुद्धि तत्त्व है जो कि बहुत कुछ जन्मजात सामान्य योग्यताओं पर निर्भर करती है।
  • तार्किकता बहुत कुछ सम्बन्धित विषय-सामग्री के परिचय या जानकारी पर निर्भर करती है चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल। इसलिये विशिष्ट विषय के लिये विशिष्ट प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिये। हम गणित या लैटिन में प्रशिक्षण देकर अर्थशास्त्र या सामाजिक समस्याओं के विषय में तर्क शक्ति का प्रशिक्षण नहीं दे सकते।
  • कुछ तर्कशास्त्र या वैज्ञानिक विधियों के सामान्य सिद्धान्तों की जानकारी अवश्य करा देना चाहिये और विभिन्न की समस्याओं के लिये उसका उपयोग कराना चाहिए।
  • मानवीय विचार का प्रत्येक विभाग अपना विशिष्ट चरित्र, भ्रांतियाँ एवं खतरा रखता है। गणित उच्चस्तरीय ज्ञान एवं प्रशिक्षण मनोविज्ञान और शिक्षा में तर्क की सफलता के लिये दावा नहीं कर सकता।
  • विभिन्न प्रकार के तथ्यों (facts) को ढूंढ निकालने के लिये विशेष या ज्ञान होना आवश्यक है।

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्न प्रकार हैं-

  • मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ यह विधि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है। इस विधि में बालक वैज्ञानिक ढंग से ही ज्ञान को अर्जित करते हैं और शिक्षण सम्बन्धी सभी प्रक्रियायें वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न होती है।
  • समस्या समाधान विधि द्वारा छात्रों की अनेक क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि छात्रों को क्रियायें करने के लिए प्रेरित करती है। समस्या स्वयं ही अपने आप में एक प्रेरक है। समस्या समाधान विधि छात्रों की समस्या का समाधान करने के लिए प्रेरित करती है।
  • इस विधि में छात्रों एवं शिक्षक के बीच अधिक सम्पर्क होने के कारण छात्र और शिक्षक के व्यवहार सौहार्दपूर्ण तथा सामंजस्यपूर्ण बनते हैं और शिक्षकों के निर्देशन को वह सहर्ष स्वीकार करते हैं।
  • समस्या समाधान विधि एक लचीली विधि है और इसका प्रयोग किसी भी शिक्षण परिस्थिति में सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से प्रजातान्त्रिक है। इसमें छात्र स्वयं अपनी समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार प्रजातन्त्र में मानव व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है ठीक उसी प्रकार इस विधि में भी छात्रों के व्यक्तित्व को समस्या समाधान की दिशा में विशेष महत्व दिया गया है।
  • समस्याओं को हल करने के लिए छात्रों को समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्र करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं, तर्क वितर्क करना पड़ता है, चिन्तन करना पड़ता है जिससे छात्रों का मानसिक विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि तर्क एवं आलोचना के द्वार खोलती है जिससे चालकों की मानसिक शक्तियों का विकास सम्भव होता है।
  • इस विधि द्वारा चूंकि बालकों को समस्या का समाधान अपने प्रयासों से स्वयं हो खोजना होता है अतः छात्र अधिक से अधिक प्रयास कर अध्ययन कर वार्तालाप के माध्यम से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं जिससे उनमें परिश्रम की आदत का विकास होता है और रचनात्मक प्रवृत्ति विकसित होती है।

समस्या समाधान विधि के दोष (Defects of Problem Solving Method)

  • इस विधि से शिक्षण प्रक्रिया को चलाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। धीमी गति के कारण निर्धारित पाठ्यक्रम वर्ष भर में पूरे नहीं हो पाते। जो ज्ञान शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों से 1 वर्ष में दे पाते हैं वह इस विधि द्वारा दिया जाना सम्भव नहीं है।
  • इस विधि द्वारा छात्रों की सभी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास किया जाना सम्भव नहीं है। इसी कारण इस विधि को एकागी विधि स्वीकार किया गया है।
  • यह विधि छोटे बच्चों के शिक्षण के लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है। इस विधि में चूंकि तर्क पर विशेष बल दिया गया है और छोटे बच्चों द्वारा तर्क के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया सम्भव नहीं है।
  • समस्या समाधान विधि अरुचिपूर्ण विधि है। इस विधि से शिक्षण की प्रक्रिया नीरस हो जाती है।
  • इस विधि से शिक्षण का संचालन करने के लिए योग्य शिक्षकों को बहुत आवश्यकता है। योग्य शिक्षकों के अभाव में यह विधि सफलतापूर्वक अपनायी नहीं जा सकती।

समस्या समाधान विधि में शिक्षक का स्थान (Teacher's Place in Problem Solving Method)

इस विधि के छात्र केन्द्रित होने के कारण और छात्रों के व्यक्तिगत कार्यों पर अधिक बल दिया गया है। इस कारण अक्सर यह भ्रान्ति हो जाती है कि इस विधि में शिक्षकों की कोई विशेष भूमिका नहीं है। किन्तु यह सोच बिल्कुल निरर्थक और सही नहीं है। वास्तव में शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया की वह महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके अभाव में शिक्षण प्रक्रिया का समपन्न होना सम्भव नहीं है। इस विधि में भी शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शिक्षक ही है जो समस्याओं को प्रभावपूर्ण ढंग से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं जिनमें छात्र इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित हो तथा बाध्य हो। शिक्षक को हर कदम पर यह भी ध्यान रखना होता है कि छात्रों की रुचि इसमें बनी रहे। समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्रित करते समय भी छात्रों को शिक्षक के निर्देशन की आवश्यकता होती है।

शिक्षक के निर्देशन के अभाव में छात्र अनुपयुक्त सामग्री का संग्रह कर बैठते हैं जो किसी भी प्रकार से समस्या के समाधान में सहायक नहीं होती। छात्रों को अनुमानों के आधार पर शीघ्र ही निष्कर्षो पर पहुंचने से बचाना भी शिक्षक का ही दायित्व होता है। शिक्षक को इस बात का पूर्ण रूप से निरीक्षण करना होता है कि छात्र सही दिशा में कार्यरत हैं और यदि उनकी दिशा गलत है तो शिक्षक को छात्रों का मार्गदर्शन करना होता है। संक्षेप में कदम-कदम पर शिक्षक का निर्देशन छात्रों के लिए बहुत आवश्यक है। अतः कहा जा सकता है कि यह सोचना कि समस्या समाधान विधि में शिक्षक का कोई महत्व एवं भूमिका नहीं है एक गलत धारणा ही है।

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समस्या समाधान विधि अर्थ ,विशेषताएं, सोपान ,गुण और दोष|Problem Solving Method in hindi

शिक्षण की समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method Of Teaching) 

समस्या समाधान विधि का जन्म प्रयोजनावाद के फलस्वरूप हुआ है। समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थको में किलपेट्रिक और जॉन डीवी का नाम उल्लेखनीय है। 

समस्या समाधान विधि योजना विधि से पर्याप्त समानता है। इन दोनों विधियों में अंतर इस बात का है कि योजना विधि में प्रायोगिक कार्य को महत्व दिया जाता है। 

यह प्रायोगिक कार्य एक वास्तविक स्थिति में संपन्न किया जाता है जबकि समस्या समाधान विधि में मानसिक निष्कर्षों पर अधिक बल दिया जाता है। 

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि योजना विधि में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की क्रियाएं सम्मिलित है जबकि समस्या समाधान विधि में केवल मानसिक हल ही प्रदान किया जाता हैं। 

इस प्रकार समस्या समाधान विधि विद्यार्थी की मानसिक क्रिया पर आधारित विधि है जिसमे छात्र समस्या का चयन करके स्वयं के विचारो और तर्क शक्ति के आधार पर मानसिक रूप से समस्या का हल ढूंढ कर नवीन ज्ञान प्राप्त करता है।

स्किनर के शब्दों में – “समस्या समाधान विधि एक ऐसी रूपरेखा है जिसमे सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते है।”

इस विधि के निम्नांकित सोपान हैं-

(1) समस्या का चयन,

(2) समस्या का प्रस्तुतीकरण,

(3) तथ्यों का एकत्रीकरण,

(4) परिकल्पना का निर्माण,

(5) समाधानात्मक निष्कर्ष पर पहुँचना,

(6) मूल्यांकन,

(7) कार्य का आलेखन ।

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विशेषताएँ (Characteristics) 

(1) छात्र समस्याओं का स्वतः हल करना सीखते हैं।

(2) उनमें निरीक्षण एवं तर्क शक्ति का विकास होता है।

(3) वे सामान्यीकरण करने में समर्थ होते हैं।

(4) वे आँकड़ों के एकीकरण, मूल्यांकन एवं निष्कर्ष निकालने की प्रक्रियाओं से परिचित होते हैं।

(5) नवीन सन्दर्भ में पुराने तथ्यों का प्रयोग करना सीखते हैं।

(6) मिल-जुलकर कार्य करने की भावना जाग्रत होती है।

(7) यह प्रेरणात्मक विधि है।

(8) यह “Learning by doing” पर आधारित है।

(1) इस विधि के प्रयोग से छात्र सबसे उत्तम क्या है? के विषय में सोचना, निर्णय, तुलना तथा मूल्याकंन करना सीख जाते हैं।  

2) इस विधि के प्रयोग से छात्र समस्या हल करने के ढंग को सीख जाते हैं। 

(3)इसके द्वारा छात्र तथ्यों को संग्रह एवं व्यवस्थित करना सीख जाते हैं।

(4) इससे बालकों में स्वाध्ययन की आदत का निर्माण होता है।

(5)इसके द्वारा राष्ट्रीय एंव सामाजिक समस्याओं के आर्थिक पक्षों को समझने की सूझ का विकास होता है।

(6)इससे छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न हो जाता है तथा वे मुद्रित पृष्ठों का अन्धानुकरण नहीं करते।

(7) इसके प्रयोग से छात्र स्व-क्रिया द्वारा ज्ञान अर्जित करते हैं।

(8) यह विधि छात्रों को अपने ज्ञान को समन्वित करने में सहायता देती है।

(9) इसमें वैयक्तिक विभिन्नताओं को संतुष्ट किया जाता है।

दोष (Demerits) या सीमायें –

(1) समय और शक्ति का अपव्यय होता है।

(2) इस विधि में निष्कर्ष के गलत होने का भी भ्रम बना रह सकता है।

(3) इस विधि के प्रयोग के लिए योग्य शिक्षकों की आवश्यकता है।

( 4 ) यह विधि छोटी कक्षाओं में उपयोगी नहीं है।

5) यदि इस विधि का प्रयोग बारम्बार किया गया तो यह नीरस एवं यान्त्रिक बन जाती है।

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समस्या समाधान विधि - problem solving method : shirswastudy, समस्या समाधान विधि  ( problem solving method ).

समस्या समाधान विधि , problem solving method

समस्या समाधान का अर्थ ( Meaning of problem resolution )

विद्यार्थियों को शिक्षण काल में अनेक समस्याओं या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिनका समाधान उसे स्वयं करना पड़ता है। समस्या समाधान का अर्थ है लक्ष्य को प्राप्त करने आने समस्याओं का समाधान   इसको समस्या हल करने की विधि भी कहते हैं।

व्याख्यान प्रदर्शन विध

व्याख्यान विधि

समस्या समाधान विधि परिभाषा ( Problem Resolution Method Definition )

वुडवर्थ ( Woodworth) “ समस्या-समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसन हों तो समस्या आती ही नहीं।"

स्किनर ( Skinner) “ समस्या-समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सर्जनात्मक चिंतन तथा तर्क दोनों होते हैं।"

समस्या समाधान विधि के महत्व (Importance of problem solving method )

समस्या समाधान विधि मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक विधि है। समस्या विद्यार्थी के पाठ्यवस्तु से संबंधित होती है। इसमें छात्र को करके, सीखने के अवसर उपलब्ध होते हैं। 

इस विधि में विद्यार्थी के सामने एक समस्या रखी जाती है और विद्यार्थी उसका हल ढूंढने के लिए प्रयास करता है। अध्यापक हल ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।

अन्वेषण विधि

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps of Problem Solving Method)

  • समस्या की पहचान

a.    समस्या का स्पष्ट विवरण अथवा समस्या कथन

b.    समस्या का स्पष्टीकरण विद्यार्थियों द्वारा आपस में चर्चा

c.    समस्या का परिसीमन समस्या का क्षेत्र निर्धारित करना

  • परिकल्पना का निर्माण - जांच एवं परीक्षण के लिए परिकल्पना का निर्माण।
  • प्रयोग द्वारा परीक्षण - परिकल्पनाओं का परीक्षण करना
  • विश्लेषण
  • समस्या के निष्कर्ष पर पहुंचना

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of the Problem Solving Method)

  • विधि से विधार्थी सहयोग करके सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • दाती समस्या को हल करने की प्रक्रिया में शामिल होकर उसे हल करना सीखते हैं।
  • विद्यार्थी परिकल्पना निर्माण करना सीखते हैं और इस प्रक्रिया से उसकी कल्पनाशीलता में वृद्धि होती है।
  • विद्यार्थी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
  • यह विधि विद्यार्थी में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास में सहायक हैं।

समस्या समाधान विधि के दोष Problem resolution method faults

  • इस विधि के प्रयोग में समय ज्यादा लगता है।
  • पाठ्य-पुस्तक का अभाव होता है।
  • इस विधि में त्रुटियाँ प्रभावहीन के कारण होती है।
  • गति धीमी रहती हैं।
  • इस विधि से हर विषय वस्तु का शिक्षण नहीं किया जा सकता है।
  • समस्या उचित रूप से चुनी हुई न हो तो वह असफल रहती हैं।
  • चूंकि इस विधि में प्रायोगिक कार्य भी करना होता है। अतः शिक्षक का प्रायोगिक कार्य में दक्ष होना आवश्यक होता है।

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समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि पर टिप्पणी लिखिये।

समस्या समाधान विधि :- समस्या समाधान विधि का लंबे समय तक गणित और विज्ञान से जुड़ाव रहा। किंतु आज इसे सामाजिक अध्ययन की प्रमुख विधियों में से एक माना जाता है। इसकी एक विधि की महत्ता को स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि हमारे लोकतांत्रिक समाज में बच्चों के लिए समस्या समाधान निश्चित रूप से आवश्यक है।

समस्या समाधान को लेकर अनेक प्रकार के शोध मनोवैज्ञानियों द्वारा किए गए है। चूंकि इनमें से अधिकांश शोध प्रयोगशाला की स्थितियों में किए गए हैं और इनसे संबंधित प्रतिवेदन/शोध पत्र इतनी तकनीकी भाषा में लिखे गए हैं कि शिक्षकों को उन्हें समझने में काफी परेशानी आती है। आसान शब्दों में, समस्या समाधान को हम प्रगतिशील कदमों की एक श्रृंखला मान सकते हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा तव प्रयोग किए जाते हैं जब वह किसी समस्या को हल करने के क्रम में हो। समस्या समाधान कोई एक कार्य न होकर निम्नलिखित कई कार्यों का समावेश है।

  • पहला स्तर जब व्यक्ति किसी समस्या जिसका समाधान आवश्यक है से रूबरू होता है।
  • आंकड़ा संग्रहण स्तरं जब व्यक्ति समस्या को बेहतर समझने की कोशिश करता है और समाधान के लिए सामग्री जुटाता है।
  • इस स्तर पर व्यक्ति कुछ संभावित हल तैयार करता है।
  • इस स्तर पर संभावित उत्तरों को जांचा जाता है।

सामाजिक अध्ययन की प्रायः सभी पाठ्यपुस्तकें समस्या समाधान विधि के रूप में उपरोक्त स्तरों के प्रयोग का समर्थन करती है। यह उल्लेखनीय है कि ये सभी स्तर जॉन ड्यूवी द्वारा आलोचनात्मक चिंतन के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि डिवी के द्वारा आलोचनात्मक चिंता के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि ड्यूवी का यह भी कहना है ‘चिंतन बुद्धिमत्तापूर्ण अधिगम का माध्यम है ऐसा अधिगम जिसमें मस्तिष्क शामिल भी रहता है और समृद्ध भी होता है।”

शिक्षकों द्वारा समस्या समाधान का प्रयोग

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समस्या समाधान महत्वपूर्ण है अतः एक अनुमान लगा सकते हैं कि शिक्षक इसे एक प्रमुख माध्यम के रूप में प्रयोग करते होंगे। यद्यपि वास्तविक स्थिति हमें निराश ही करती है। कई शोध यह दर्शाते हैं कि शिक्षक सामाजिक अध्ययन में समस्या समाधान विधि को उचित महत्व नहीं देते और प्रयोग में नहीं लाते। अधिकांश शिक्षक बच्चों को तथ्यों और अवधारणाओं से परिचित करवाने तक ही सीमित रहते हैं। कुछ इससे आगे बढ़कर ‘सही’ अभिवृत्ति विकसित करने पर जोर देते हैं। ऐसी कोई गतिविधि, जिसमें बच्चे स्वयं सोचकर समाधान करके सीख सकें, व्यापक रूप से अनुपलब्ध है।

1. सबसे पहले शिक्षकों को सामाजिक अध्ययन को किसी पाठ्यपुस्तक के कुछ पन्नों के सीमित दृष्टिकोण से छूटकर एक व्यापक विषय के रूप में देखना होगा। यह दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है।

2. शिक्षकों की कार्ययोजना भी इस प्रकार बनानी चाहिए कि बच्चे समस्या से परिमित हो सकें और शिक्षक के मार्गदर्शन में उसका हल भी खोज सकें।

3. शिक्षक की भूमिका बच्चों को अलग-अलग प्रकार की पुस्तकें और स्त्रोंत प्रयोग करने में प्रोत्साहित करने की होनी चाहिए। समस्या समाधान बच्चों की वस्तुओं में तुलना में करने, संबंधों को खोजने और अध्ययन करने के लिए अवसर प्रदान करता है।

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  • पारिस्थितिक तंत्र तथा विकास | सतत् विकास या जीवन धारण करने योग्य विकास की अवधारणा | सतत् विकास में भूगोल और शिक्षा का योगदान
  • राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 की विशेषताएँ तथा सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव
  • ‘भूगोल एक अन्तरा अनुशासक विषय है’
  • मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? भूगोल शिक्षण के मूल्यांकन में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियाँ
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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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समस्या समाधान विधि क्या है problem solving method in hindi समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं

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problem solving method in hindi in teaching समस्या समाधान विधि क्या है , समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं ?

समस्या समाधान विधि क्या है ? इसमें कौन-से पद होते हैं ? इसके गुण-दोष लिखिये। What is problem solving method ? What are the steps involved in it ? Write its merits and demerits. उत्तर- रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या-समाधान विधि (Problem Solving Method in Chemistry Teaching) – इस प्रणाली का जन्म प्रयोजनवाद के फलस्वरूप हुआ। इसका आधार ह्यरिस्टिक विधि की तरह है। सबसे पहले अध्यापक कक्ष में बालकों के सामने कोई समस्या समाधान के लिए रखता है। यह समस्या उनके पाठ से सम्बन्धित होती है। इसके बाद विद्यार्थी मिलकर वाद-विवाद के द्वारा उस समस्या का हल ढूढने की कोशिश करते हैं। वे एक वैज्ञानिक की भाँति तरह-तरह के प्रयास करते हैं और जब तक उसका समाधान नहीं खोज लेते हैं, तब तक कोशिश करते रहते हैं। वुडवर्थ (Woodworth) – “समस्या समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं।” जार्ज जॉनसन (George Johnson) – “मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का सर्वोत्तम ढंग वह है जिसके द्वारा मस्तिष्क के समक्ष वास्तविक समस्याएँ उत्पन्न की जाती हैं और उसको उनका समाधान निकालने के लिए अवसर तथा स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।” गेट्स तथा अन्य (Gates and others) – “समस्या समाधान, शिक्षण का एक रूप है जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है।‘‘ स्किनर (Skinner) –  “समस्या समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं।‘‘ समस्या समाधान विधि के सोपान या चरण-अध्यापक को समस्या समाधान विधि में कुछ विशेष क्रमबद्ध प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये निम्न हैं- (प) सपस्या का चयन करना (Selection of Problem) – सर्वप्रथम शिक्षक को विज्ञान के विषय में से उन प्रकरणों का चयन करना पड़ेगा जो समस्या विधि की सहायता से पढ़ाये जा सकते हैं, क्योंकि सभी प्रकरण (Topic) समस्या समाधान विधि से नहीं पढ़ाये जा सकते। (पप) समस्या से सम्बन्धि तरयों का एकत्रीकरण एवं व्यवस्था (Collection & Organisation of Facts Regarding Problem) — समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करना भी अति आवश्यक है। यदि साधन ही अस्पष्ट होंगे तो हम इस विधि से जितना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त नहीं कर सकेंगे। (पपप) समस्या का महत्व स्पष्ट करना (Classifying the Importance of the Problem) — यदि विद्यार्थियों को समस्या के महत्व का पता नहीं होगा तो वे समस्या में कभी भी रुचि नहीं लेंगे। विद्यार्थियों का समस्या में रुचि न लेने से समस्या का कभी भी सही हल नहीं निकल सकता। (पअ) तथ्यों की जाँच तथा संभावित हलों का निर्णय (Evaluation of Facts and Decision about Possible Solutions) – अब समस्या से सम्बन्धित तथ्यों की जाँच की जाती है और यह पता लगाया जाता है कि उनमें से कौन से तथ्य समस्या के अनुरुप हैं और किन तथ्यों को अस्वीकृत किया जा सकता है। तथ्यों की जाँच के उपरान्त ही समस्या का हल निकालने का प्रयत्न किया जाता है। यदि किसी समस्या का हल कई प्रकार से निकलता है तो शिक्षक और विद्यार्थी दोनों मिलकर सबसे सही हल ढूंढने का प्रयत्न करेंगे। तथ्यों का आलोचनात्मक विश्लेषण, समालोचन तथा विचार-विमर्श किया जायेगा और तत्पश्चात् निष्कर्ष पर पहुंचा जायेगा। (अ) सामान्यीकरण एवं निष्कर्ष निकालना (Generalçation and Conclusion) – सामान्यीकरण से निष्कर्षों के सत्यापन में सहायता मिलती है। इसके साथ ही यह जानने के लिए प्रेरणा मिलती है कि ये निष्कर्ष प्रयोग में लाये जा सकते हैं या नहीं। (अप) निष्कर्षों का मूल्यांकन एवं समस्या का लेखा-जोखा बनाना (Evaluation of Result & Preparing Records of the Problem) – अन्त में समस्या के समाधान हेतु विद्यार्थी व शिक्षक जिस निष्कर्ष या परिणाम पर पहुंचते हैं उसका मूल्यांकन किया जाता है। समस्या समाधान विधि की विशेषताएँ- (प) सूझबूझ या अन्तर्दृष्टिपूर्ण (Insightful) – यह विधि सूझबूझपूर्ण वाली विधि है क्योंकि इसमें चयनात्मक और उचित अनुभवों का पुनर्गठन सम्पूर्ण हल में किया जाता है। (पप) सृजनात्मक (Creative) – इस विधि में विचारों आदि को पुनर्गठित किया जाता है, इसलिए इस विधि को सृजनात्मक माना जाता है। (पपप) चयनात्मक (Selective) – इस विधि की प्रक्रिया इस दृष्टि से चयनात्मक है कि सही हल ढूंढने के लिए चयन तथा उपयुक्त अनुभवों को स्मरण किया जाता है। (पअ) आलोचनात्मक (Critical) – यह विधि आलोचनात्मक है क्योंकि यह अनुपात या प्रयोगात्मक हल का पर्याप्त मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है। (अ) लक्ष्य-केन्द्रित विधि (Goal – oriented Method) – इस विधि का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है । लक्ष्य ही बाधा को दूर करना होता है। समस्या समाधान विधि के गुण- (प) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific Attitude) – विधि से विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। वे मुद्रित पाठों का प्रधानकरण नहीं करते और पुस्तकीय ज्ञान पर आश्रित नहीं रहते। (पप) जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सहायक (Helpful in Solving the Dattlems of Life) – प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है। विद्यालय में समस्याओं के समाधान के प्रशिक्षण प्राप्त करने से विद्यार्थियों में ऐसे सोशल व अनुभव आ जाते हैं जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं। (पपप) तथ्यों का संग्रह और व्यवस्थित करना (Collection and Organisation of Data) – इस विधि से विद्यार्थी तों को एकत्रित करना सीखते हैं तथा इन एकत्रित तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात् उन्हें व्यवस्थित करना भी सीखते हैं। (पअ) अनुशासन को बढ़ावा (Collection and Organisation of Data) –  इस विधि से अनुशासन-प्रियता को बढ़ावा मिलता है। प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का हल निकालने में ही जुटा रहता है। अतः उसके पास अनुशासन भंग करने का अवसर ही नहीं होता। (अ) स्वाध्याय की आदत का निर्माण (Formation of Habit of Self-Study) – इस विधि से बालकों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है जो आगे जीवन में बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। (अप) स्थायी ज्ञान (Permanent Knowledge) – इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान विद्यार्थियों के पास स्थायी रूप से रहता है, क्योंकि विद्यार्थियों ने स्वयं समस्या का समाधान ढूंढकर इस ज्ञान को अर्जित किया होता है। (अपप) पथ-प्रदर्शन (Guidance) – इस विधि से शिक्षक और शिक्षार्थी को एक-दूसरे के निकट आने का अवसर मिलता है। इस विधि में शिक्षक के पथ-प्रदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। समस्या का समाधान ढूंढने के लिए विद्यार्थी समय-समय पर शिक्षक की सहायता लेता है। (अपपप) विभिन्न गुणों का विकास (Development of Various Qualities) – समस्या समाधान विधि बालकों में सहनशीलता (च्ंबजपमदबम), उत्तरदायित्व को भावना (Sense of Responsibility), व्यवहारिकता (Practicability), व्यापकता (Broad Mindedness), गंभीरता (Seriousness), दूरदर्शिता (Farsightedness) आदि अनेक गुणों को जन्म देती है। समस्या समाधान विधि के दोष (प) संदर्भ सामग्री का अभाव (Lack of Reference Materials)- इस विधि में विद्यार्थी को बहुत अधिक संदर्भ सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जो आसानी से उपलब्ध नहीं होती। कई ऐसी पुस्तकें समस्या का समाधान ढूंढने में आवश्यक होती हैं जो प्रायः विद्यालय के पुस्तकालय में नहीं होती। (पप) चयनित अंशों का अध्ययन (Study of Selected Portions) – विद्यार्थी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन न कर केवल उन्हीं अंगों का अध्ययन करते हैं जो उनकी चुनी हुई समस्या से सम्बन्धित है। (पपप) नीरस शैक्षणिक वातावरण (Dull Educational Environment) – इस विधि का कक्षा में अधिक प्रयोग होने से सम्पूर्ण शैक्षणिक वातावरण में नीरसता आ जाती है। जब विद्यार्थी किसी एक समस्या पर कई दिन या कई सप्ताह कार्य करते है तो उस समस्या से उनकी रुचि समाप्त हो जाती है क्योंकि बालक स्वभाव से ही विभिन प्रकार के कार्यों में भाग लेना चाहते हैं। (पअ) निर्मित समस्याओं का वास्तविक जीवन की समस्याओं से तालमेल का अभाव (Lack of Co-ordination between Created Problems and Actual Problems) – कई बार कक्षा में निर्मित समस्यायें वास्तविक जीवन की समस्याओं से नहीं खाती जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहने । (अ) प्राथमिक कक्षाओं के लिए अनुपयुक्त (Not Fit for Primary Classes) – यह विधि प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि इन कक्षाओं के विद्यार्थियों का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वह समस्या का चुनाव कर सकें तथा समस्याओं का हल निकाल सकें। (अप) समस्या का चुनाव एक कठिन कार्य-रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या समाधान विधि का उपयोग इसलिए भी दोषपूर्ण या सीमित है क्योंकि समस्या का चुनाव करना बहुत ही कठिन कार्य होता है। प्रत्येक विद्यार्थी या शिक्षक समस्या का चुनाव नहीं कर सकता। (अपप) संतोषजनक परिणामों का अभाव (Lack of Satisfactory Results) – इस विधि से प्रायः संतोषजनक परिणाम भी प्राप्त नहीं होते। कई बार विद्यार्थियों के मन में ऐसी बात आती है कि वह व्यर्थ ही समय नष्ट कर रहा है या जो परिणाम निकाला गया है उसका समस्या के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठता। (अपपप) अधिक समय खर्च होना (Requires More Time) – इस विधि द्वारा समस्या के समाधान ढूंढने में विद्यार्थी का समय बहुत अधिक खर्च हो जाता है। इससे हमेशा यह भय बना रहता है कि पाठ्यक्रम पूरा होगा भी या नहीं। (पग) अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता (Experienced Teachers are Required) – रसायन विज्ञान शिक्षण में समस्या-समाधान विधि के प्रयोग के लिए कुशल, योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो कि समस्या का सावधानी से चुनाव कर सकें। लेकिन वास्तव में ऐसे गुणी शिक्षकों का अभाव ही रहता है। समस्या समाधान विधि के लिए सुझाव- 1. समस्या देने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समस्या बालको के मानसिक स्तर की हो तथा उनके अनुभवों पर आधारित हो। 2. पहले बालकों को सरल, फिर कठिन समस्या देनी चाहिए ताकि वे धीरे-धार सफलता प्राप्त करते हुए कार्य करें। 3. समस्या उनकी रुचि के अनुसार होनी चाहिए जो उनके पाठयक्रम के अन्तगत आती हो। 4. समस्या समाधान विधि का प्रयोग बड़ी कक्षाओं में ही ठीक प्रकार से हो सकता है। यदि हम समस्या को ठीक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें तो इससे मानसिक कुशलताओं, अभिवृत्तियों व आदेशों के विकास में सहायता मिलती है।

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